CG : गांव के बाहर कच्ची झोपड़ी, साथ में रहते हैं लड़का और लड़की, शादी से पहले यहां निभाई जाती है अनोखी परंपरा

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका अपनी प्राकृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है। इस इलाके में बड़ी संख्या में आदिवासी, जनजाति के लोग रहते हैं। यहां रहने वाले लोगों की परंपराएं भी अनोखी हैं। यहां रहने वाली जनजातियां कई तरह के रीत-रिवाज मनाती है। हम आपको बस्तर इलाके में शादी से जुड़ी एक परंपरा के बारे में बता रहे हैं जिसे देखकर आप हैरान हो जाएंगे। राज्य के आदिवासी इलाकों के माड़िया और मुरिया जाति के लोग भी रहते हैं। इन लोगों को एक अनोखी परंपरा है जहां शादी से पहले लड़का-लड़की एक साथ रहते हैं। इस परंपरा को घोटुल प्रथा कहा जाता है।
क्या होती है घोटुल प्रथा
यह प्रथा मुख्य रूप से बस्तर के मुरिया और माड़िया जनजाति के आदिवासियों निभाते हैं। घोटुल उस जगह को कहा जाता है जहां आदिवासी लोग अपना उत्सव मनाते हैं। घोटुल को गांव के किनारे बनाया जाता है। यह मिट्टी की एक झोपड़ी होती है। इसमें आदिवासी समुदाय की युवक-युवतियां को, बुजुर्ग व्यक्ति की देख-रेख में, आपस में मिलने-जुलने, जानने-समझने का अवसर दिया जाता है। घोटुल में भाग लेने वाली युवतियों को मोतियारी एवं लड़कों को छेलिक कहा जाता है।
जीवन-साथी का करते हैं चुनाव
यहां आदिवासी लड़के-लड़कियां रात में रहते हैं। हालांकि अलग-अलग इलाकों की घोटुल परम्पराएं अलग अलग हैं। कई इलाकों में लड़के-लड़कियां घोटुल में ही रहते हैं और वहीं सोते हैं तो कई जगहों पर दिनभर साथ रहने के बाद वो अपने-अपने घरों में सोने चले जाते हैं।
परिवार के सदस्य भी रहते हैं साथ
घोटुल में उस जाति से जुड़ी आस्थाएं, नाच-संगीत, कला और कहानियां भी बताई जाती हैं। घोटुल में समुदाय से जुड़े वरिष्ठ मौजूद होते हैं। शाम को लड़के-लड़कियां यहां धीरे-धीरे एकट्ठे होने लगते हैं और वे ग्रुप में गाते हुए ही घोटुल तक पहुंचते हैं। इस दौरान विवाहित पुरुष ढोल बजाते हैं और युवा डांस और नृत्य करते हैं।
जीवनसाथी को समझने के लिए करते हैं ऐसा
घोटुल प्रथा में लड़के-लड़की अपनी पसंद के जीवनसाथी चुनते हैं। इस दौरान वह दूसरे को अच्छे से समझते हैं। अपने-अपने समाज और परंपरा के बारे में जानकारी देते हैं जब दोनों के बीच बॉडिंग ठीक लगती है तो परिवार के सदस्यों को आकर बताते हैं और फिर उनकी शादी कर दी जाती है।