November 7, 2024

छत्तीसगढ़ : विश्व में प्रसिद्ध है बस्तर का ढोकरा आर्ट, जानिए क्या होता है खास…

रायपुर। बस्तर के आदिवासियों के ढोकरा आर्ट को छत्तीसगढ़ की शान कहा जाता है. बस्तर में बनाए जाने वाले ढोकरा आर्ट की मूर्तियों की डिमांड देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. ढोकरा कला जानवरों के आदिवासी विषयों, पौराणिक जीवों, मानव जीवों, और प्राकृतिक आकारो से प्रेरित है. ढोकरा कला दस्तकारी की एक प्राचीन कला है. इसमें पुरानी मोम-कास्टिंग तकनीक का उपयोग करके मूर्तियाँ बनाईं जाती हैं.

घड़वा जनजाति के लोग बनाते है ढोकरा
छत्तीसगढ़ में ढोकरा मुख्यतः घड़वा जनजाति बनाती है. घड़वा जानजाति को लेकर एक दिलचस्प लोक कथा है. एक बार एक शिल्पकार ने बस्तर के शासक भानचंद की पत्नी को तोहफ़े में एक ढोकरा हार दिया. तभी राजा का ध्यान इस अनोखी कला की तरफ़ गया. शिल्पकार का सम्मान करने के उद्देश्य से शासक ने उसे घड़वा का ख़िताब दे दिया. ये शब्द संभव: गलना से लिया गया था जिसका मतलब होता है पिघलना और मोम का काम. कहा जाता है कि तब से यहां ढोकरा कला का काम होने लगा. बस्तर की ढोकरा कलाकृतियों में ढोकरा सांड या बैल सबसे प्रसिद्ध मूर्ति मानी जाती है. छत्तीसगढ़ की ढोकरा शैली में विशेष लंबी मानव आकृतियाँ बनती हैं. इसके अलावा आदिवासी और हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी बहुत प्रसिद्ध हैं.

जानिए कैसे तैयार होता है ढोकरा?
ढोकरा शिल्पकला में आदिवासी संस्कृति की छाप होती है. देवी देवताओं और पशु आकृतियों में हाथी, घोड़े, हिरण, नंदी, गाय और मनुष्य की आकृति होती है. इसके अलावा शेर, मछली, कछुआ, मोर भी बनाए जाते हैं. लैदुराम के मुताबिक ढोकरा आर्ट की एक मूर्ति बनाने में एक दिन का समय लगता है. सबसे पहले चरण में मिट्टी का प्रयोग होता है और मिट्टी से ढांचा तैयार किया जाता है. काली मिट्टी को भूंसे के साथ मिलाकर बेस बनता है और मिट्टी के सूखने पर लाल मिट्टी की लेप लगाई जाती है. लाल मिट्टी से लेपाई करने के बाद मोम का लेप लगाते हैं. मोम के सूखने पर अगले प्रोसेस में मोम के पतले धागे से बारीक डिजाइन बनाई जाती है और सूखने पर अगले चरण में मूर्ति को मिट्टी से ढक देते हैं. इसके बाद सुखाते के लिए धूप का सहारा लेना होता है. धूप में सुखाने के बाद फिर मिट्टी से ढकते हैं. अगले चरण में ऊपर से दो-तीन मिट्टी से कवर करने के बाद पीतल, टिन, तांबे जैसी धातुओं को पहले हजार डिग्री सेल्सियस पर गर्म कर पिघलाया जाता है.

धातु को पिघलाने में चार से पांच घंटे का समय लगता है. पूरी तरह पिघलने के साथ ही ढांचा को अलग भट्टी में गर्म करते हैं. तरह गर्म होने पर मिट्टी के अंदर का मोम पिघलने लगता है. खाली स्थान पर पिघलाई धातु को ढांचे में धीरे धीरे डाला जाता है और मोम की जगह को पीतल से ढक दिया जाता है. फिर 4 से 6 घंटे तक ठंडे होने के लिए रखा जाता है. ठंडा होने के बाद छेनी- हथौड़ी से मिट्टी निकालने के लिए ब्रश से साफ किया जाता है और इसके बाद मूर्तियों पर पॉलिश किया जाता है. इन सब प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही ढोकरा आर्ट की मूर्तियां पूरी तरह से तैयार होती हैं

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