December 22, 2024

त्योहारों पर तिथियों का कन्फ्यूजन, जानिए कब हैं धनतेरस और दिवाली….

DIWALI

आप दिवाली 31 अक्टूबर को मना रहे हैं या 1 नवंबर को? ये सवाल आजकल हर कोई पूछ रहा है. दिवाली कब मनाई जाए, तारीख को लेकर असमंजस की स्थिति केवल आम लोगों में ही नहीं बल्कि धर्मगुरुओं, ज्योतिषाचार्यों और पर्व, त्योहार की तिथियां बताने वाले लोगों को भी है. हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि पर ही दिवाली मनाई जाती है. दिवाली मनाने की परंपरा रात्रि में ही है और 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को लेकर लोगों के बीच बहुत कंफ्यूजन है.

दिवाली को लेकर क्यों है कंफ्यूजन?
ज्योतिषाचार्य डॉ. अजय भांबी कहते हैं कि हिंदू त्योहारों में अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख से कोई मतलब नहीं होता. हमारे यहां रात 12:00 से रात 12:00 का कोई मतलब नहीं है. हमारा संवत्सर चैत्र मास से शुरू होता है, इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार उस समय मार्च-अप्रैल चलता रहता है. हमारे यहां सूर्य तो कांस्टेंट है लेकिन चंद्रमा का वेरिएशन होता रहता है. मौसम और पृथ्वी से दूरी के अनुसार, चंद्रमा का मूवमेंट 12 डिग्री से लेकर 14 डिग्री तक होता रहता है.

अगर आज तिथि शुरू हो गई, आज जो सूर्योदय हुआ, उस समय पंचमी तिथि थी, इसका मतलब सूर्य से चंद्रमा इतनी दूर था कि पंचमी तिथि हुई. तिथि लगभग चंद्रमा पर निर्भर करती है, जो 12 से 14 डिग्री होती है. हमें देखना होता है कि सूर्योदय के समय कौन सी तिथि थी.

ज्योतिषाचार्य राजकुमार शास्त्री कहते हैं कि दिवाली कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है, कोई भी तिथि 19 घंटे से लेकर 26 घंटे तक होती है. अंग्रेजी तारीख के हिसाब से तिथि को मिलाना चाहते हैं, अंग्रेजी तारीख घंटा, मिनट और सेकंड पर चलती है. पंचांग घटी, पल और विपल पर चलता है.

कैसे बनता है मुहूर्त
1 घटी में 60 पल होते हैं और 1 पल में 60 विपल होते हैं. एक घटी 24 मिनट की होती है, दो घटी 48 मिनट की होती है, एक मुहूर्त 48 मिनट का होता है. जबकि एक घंटा 60 मिनट का होता है तो 48 मिनट और 60 मिनट के बीच 12 मिनट का फर्क पड़ गया. इस प्रकार से जो 24 घंटे हैं, उसमें 30 मुहूर्त बन गए. तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, नवग्रहों की स्थिति, मलमास, अधिकमास, शुक्र और गुरु अस्त, अशुभ योग, भद्रा, शुभ लग्न, शुभ योग तथा राहूकाल आदि इन्हीं के योग से शुभ मुहूर्त निकाला जाता है.

धर्मगुरुओं के बीच है मतभेद
डॉ. अजय भांबी कहते हैं इसके ऊपर वाराणसी सहित कई जगहों पर धर्म संसद भी बैठी, इसको लेकर लोगों में मतभिन्नता तो है. अगर शास्त्रीय तरीके से देखे तो मुझे लगता है कि 31 अक्टूबर को दिवाली मनाई जानी चाहिए. अगर 1 नवंबर को अमावस्या ही नहीं है तो वो दिवाली कैसे होगी. अमावस्या की रात्रि भगवान राम अयोध्या आए थे और अयोध्यावासियों ने दिया जलाया था.

राजकुमार शास्त्री कहते हैं समय के आधार पर पर्व मनाया जाना चाहिए. दीपावली में अमावस्या का महत्व है कि वो प्रदोष काल में होनी चाहिए. जिसका मतलब है कि सूर्योदय से 45 मिनट पहले तक और 45 मिनट बाद तक प्रदोष काल होना चाहिए. इस बार जो दीपावली आ रही है, 31 अक्टूबर को भी सूर्यास्त से 48 मिनट पहले प्रदोष काल शुरू हो रहा है और 1 नवंबर को भी जो अमावस्या तिथि है, सूर्यास्त के बाद भी वह 38 मिनट के करीब है. अगर आधे से ज्यादा है तो वह पूरा माना जाता है इसलिए दिवाली की पूजा 31 अक्टूबर को भी कर सकते हैं और 1 नवंबर को भी कर सकते हैं.

पहले भी होते थे दो दिन के त्योहार?
डॉ. अजय भांबी कहते हैं ऐसा नहीं है कि अब ऐसा होने लगा है, हमेशा से ऐसा होता रहा है क्योंकि हमारे जो त्योहार हैं, चंद्रमा से होते हैं. चंद्रमा मूवमेंट करता रहता है.

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