छत्तीसगढ़ में बढ़ रहा कुत्तों का आतंक, सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े, मानवाधिकार आयोग ने क्या कहा?
रायपुर। छत्तीसगढ़ में पिछले एक साल में कुत्तों के काटने के कम से कम 1,19,928 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें तीन लोगों की मौत भी हुई है। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। एक अधिकारी ने बताया कि वास्तविक आंकड़े इससे कहीं ज्यादा होंगे, क्योंकि यह आंकड़े सिर्फ सरकारी अस्पतालों से जुटाए गए हैं।
राज्य मानवाधिकार आयोग ने राज्य भर में कुत्तों के बढ़ते आतंक पर स्वतः संज्ञान लिया है। इस मामले पर चिंता जताते हुए आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष और पूर्व डीजीपी गिरधारी नायक ने नगर पालिकाओं, मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और जिला प्रशासन को पत्र लिखा था।
जिला अस्पतालों से लिए गए आंकड़े
गिरधारी नायक ने कहा कि राज्य के विभिन्न भागों में कुत्तों के काटने की लगातार हो रही घटनाओं की खबरों के आधार पर आयोग ने राज्य के सभी सरकारी जिला अस्पतालों से कुत्तों के काटने के मामलों की जानकारी मांगी है। साथ ही टीकाकरण और उपचार की स्थिति के बारे में भी जानकारी मांगी है। आयोग द्वारा तैयार किए गए संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि इन सरकारी अस्पतालों में कोरबा, बलौदा बाजार और राजनांदगांव में कुत्तों के काटने से तीन मौतें दर्ज की गईं और 119928 से अधिक मामले सामने आए। इनमें से रायपुर में सबसे अधिक 15953 मामले दर्ज किए गए, जबकि बिलासपुर में 12301 और दुर्ग में 11084 मामले दर्ज किए गए।
कुत्तों की आबादी नियंत्रित करने की सिफारिश
भारतीय मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 12(जे) के तहत छत्तीसगढ़ राज्य मानवाधिकार आयोग मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि कुत्तों के काटने से कई लोग घातक चोटों का शिकार होते हैं, जबकि कई लोग स्वास्थ्य के अधिकार से समझौता करते हैं। नायक ने कहा कि कुत्तों के खतरे के कारण लोगों का घर से बाहर निकलकर टहलना या पैदल चलना मुश्किल हो गया है। कुत्तों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और एक अध्ययन के अनुसार, दो साल के भीतर कुत्तों की एक जोड़ी सैकड़ों में बदल जाती है। हमने नगर पालिका को नसबंदी अभियान चलाने और कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने की सिफारिश की है।
एंटी रेबीज के टीके लगाए गए
कुत्तों के काटने से होने वाले शारीरिक और आर्थिक नुकसान को रोकने के लिए इस मुद्दे के बारे में नागरिकों में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि डेटा से पता चलता है कि कुत्तों के काटने के 100% मामलों में एंटी-रेबीज टीके लगाए जाते हैं और कुत्तों के काटने का यह डेटा सार्वजनिक जागरूकता के लिए भी महत्वपूर्ण है। नागरिकों का यह भी कर्तव्य है कि वे आवारा कुत्तों को खिलाने के परिणामों के बारे में जागरूक हों, ताकि वे बच्चों, बुजुर्गों और अन्य व्यक्तियों को नुकसान न पहुंचा सकें।
किसी भी क्षेत्र में किसी भी हिंसक या जानलेवा कुत्ते की सूचना तुरंत संबंधित विभाग को देना आवश्यक है ताकि त्वरित और कानूनी कार्रवाई की जा सके। उन्होंने कहा कि कुत्तों के काटने का डेटा मानव जीवन के लिए गंभीर खतरे का संकेत देता है।