October 6, 2024

CG : राजधानी में रथयात्रा पर उत्सव का माहौल; CM साय ने छेरापहरा की रस्म अदा कर जनता के लिए मांगा आशीर्वाद

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी में भी बड़े धूमधाम से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली गई. रायपुर के गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर से प्रभु की रथयात्रा निकली. इस महापर्व के मौके पर राजधानी में सुबह से ही उत्सव का माहौल है. वहीं इस अवसर पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, राज्यपाल विष्वभूषण हरिचंदन, पूर्व सीएम बघेल और सांसद बृजमोहन अग्रवाल सहित कई दिग्गज नेता भी प्रभु का आशिर्वाद पाने मंदिर पहुंच गए हैं. सीएम साय ने छेरापहरा का पारंपरिक अनुष्ठान किया और सोने की झाडू से झाडू लगाकर इसके बाद मुख्यमंत्री साय ने प्रभु जगन्नाथ की प्रतिमा को रथ तक लेकर गए और रथयात्रा का शुभारंभ किया.

विष्णुदेव साय ने सभी प्रदेशवासियों को रथयात्रा की बधाई देते हुए कहा कि यह पर्व ओडिशा के लिए जितना बड़ा उत्सव है, उतना ही बड़ा उत्सव छत्तीसगढ़ के लिए भी है. महाप्रभु जगन्नाथ जितने ओडिशा के लोगों को प्रिय हैं, उतने ही छत्तीसगढ़ के लोगों को भी प्रिय हैं, और उनकी जितनी कृपा ओडिशा पर रही है, उतनी ही कृपा छत्तीसगढ़ पर रही है.

CM साय ने कहा कि भगवान जगन्नाथ किसानों के रक्षक हैं. उन्हीं की कृपा से बारिश होती है. उन्हीं की कृपा से धान की बालियों में दूध भरता है और उन्हीं की कृपा से किसानों के घर समृद्धि आती है. मैं भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करता हूं कि इस साल भी छत्तीसगढ़ में भरपूर फसल हो. उन्होंने कहा कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा से मेरी प्रार्थना है कि वे हम सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें और हमें शांति, समृद्धि और खुशहाली की ओर अग्रसर करें.

ओडिशा के तर्ज पर होती है छत्तीसगढ़ में रथ यात्रा
रथ यात्रा के लिए भारत में ओडिशा राज्य को जाना जाता है. ओडिशा का पड़ोसी राज्य होने के नाते छत्तीसगढ़ में भी इसका काफी बड़ा प्रभाव है. आज निकाली गई रथयात्रा में प्रभु जगन्नाथ, भैया बलदाऊ और बहन सुभद्रा की खास अंदाज में पूजा-अर्चना की गई. जगन्नाथ मंदिर के पुजारी के अनुसार उत्कल संस्कृति और दक्षिण कोसल की संस्कृति के बीच की यह एक अटूट साझेदारी है. ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान छत्तीसगढ़ का शिवरीनारायण-तीर्थ है, यहीं से वे जगन्नाथपुरी जाकर स्थापित हुए. शिवरीनारायण में ही त्रेता युग में प्रभु श्रीराम ने माता शबरी के मीठे बेरों को ग्रहण किया था. यहां वर्तमान में नर-नारायण का मंदिर स्थापित है.

बता दें, ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ का मुख्य मंदिर है, जहां हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों से मिलने बाहर निकलते हैं. वहीं छत्तीसगढ़ की राजधानी स्थित जगन्नाथ मंदिर में हर साल की तरह इस साल भी यहां रथयात्रा को लेकर काफी उत्साह से तैयारियां की गई हैं. मंदिर में विशेष हवन और पूजा की जा रही है. इस अवसर पर रविवार को यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान के दर्शन को आते हैं. वहीं जगन्नाथ सेवा समिति ने इस साल बड़े पैमाने पर प्रसाद वितरण की व्यवस्था भी की है.

रथयात्रा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक विधियों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होने ने बताया कि वैसे इस यात्रा का शुभारम्भ ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान पूर्णिमा से हो जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ मन्दिर से बाहर निकलकर भक्ति रस में डूबकर अत्यधिक स्नान कर लेते हैं, जिसकी वजह से वे बीमार हो जाते हैं. पन्द्रह दिनों तक जगन्नाथ मन्दिर में प्रभु की पूजा अर्चना के साथ दुर्लभ जड़ी बूटियों से बना हुआ काढ़ा तीसरे, पांचवें, सातवें और दसवें दिन पिलाया जाता है. भगवान जगन्नाथ को बीमार अवस्था में दर्शन करने पर भक्तजनों को अतिपुण्य का लाभ प्राप्त होता है.

भाई बलराम और बहन सुभद्रा के सात गुण्डिचा मंदिर जाते हैं भगवान
वहीं स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होने के पश्चात् भगवान जगन्नाथ जी अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा जी के साथ तीन अलग अलग रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर अर्थात् गुण्डिचा मन्दिर जाते हैं, प्रभु की इस यात्रा को रथयात्रा कहा जाता है.

जगन्नाथ जी के रथ को नन्दी घोष कहते हैं और बलराम दाऊ जी के रथ को तालध्वज कहते हैं, दोनों भाईयों के मध्य भक्तों का आकर्षण केन्द्र बिन्दु रहता है, बहन सुभद्रा जी देवदलन रथ पर सवार होकर गुण्डिचा मन्दिर जाती हैं. रथयात्रार पर भगवान जगन्नाथ महाप्रभु जी का नेत्र उत्सव मनाया जाता है. रथयात्रा के दिन जगन्नाथ मन्दिर गायत्री नगर में 11 पन्डितों द्वारा जगन्नाथ जी का विशेष अभिषेक, पूजा और हवन करते हुए रक्त चंदन, केसर, गोचरण, कस्तुरी और कपूर स्नान के पश्चात् भगवान को गजामूंग का भोग लगाया जाता है.

साल में 13 यात्राएं करते हैं भगवान जगन्नाथ
विधायक मिश्रा ने बताया कि भगवान जगन्नाथ बारह महीने में तेरह यात्रा करते हैं, केवल चार यात्राएं क्रमशः स्नान पूर्णिमा, नेत्रोत्सव या चन्दन यात्रा, रथयात्रा तथा बाहुड़ा यात्रा में मन्दिर से बाहर निकलकर भक्तों के साथ यात्रा करते हैं.

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