महिला सुरक्षा को लेकर गृह मंत्रालय सख्त, नए दिशानिर्देश जारी
नई दिल्ली । केंद्र ने महिलाओं की सुरक्षा और उनके खिलाफ होने वाले अपराधों से निबटने के लिए राज्यों को नए सिरे से परामर्श जारी किया है और कहा कि नियमों के अनुपालन में पुलिस की असफलता से ठीक ढंग से न्याय नहीं मिल पाता. उत्तर प्रदेश के हाथरस में महिला के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म और हत्या को लेकर देशभर में फूटे गुस्से के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीन पन्नों का विस्तृत परामर्श जारी किया है।
- अगर अपराध संज्ञेय हैं, तो एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य.
- एफआईआर दर्ज नहीं हुए, तो संबंधित अधिकारी के लिए सजा का प्रावधान सुनिश्चित हो.
- बलात्कार के जुड़े मामलों की जांच दो महीने में खत्म हो. इसके लिए गृह मंत्रालय ने एक पोर्टल बनाया है. इन मामलों की निगरानी हो सकती है.
- बलात्कार या यौन शोषण मामले की सूचना मिलने के बाद 24 घंटे के अंदर मेडिकल जांच अनिवार्य. पीड़िता की सहमति आवश्यक.
- मृत्यु से पहले अगर बयान दर्ज किया जाता है, तो इसे अहम सबूत माना जाएगा.
- घटना के साक्ष्य इकट्ठा करने के लिए फोरेंसिक साइंस सर्विसेज डायरेक्टोरेट ने दिशा निर्देश जारी किए हैं. उनका पालन अनिवार्य है.
- इन मामलों में पुलिस लापरवाही बरतती है, तो उन पर कार्रवाई होनी चाहिए.
गृह मंत्रालय ने कहा कि सीआरपीसी के तहत संज्ञेय अपराधों में अनिवार्य रूप से प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए.
परामर्श में कहा गया कि महिला के साथ यौन उत्पीड़न सहित अन्य संज्ञेय अपराध संबंधित पुलिस थाने के न्यायाधिकारक्षेत्र से बाहर भी होता है तो कानून पुलिस को शून्य प्राथमिकी (जीरो एफआईआर) और प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार देता है.
गृह मंत्रालय ने कहा, ‘सख्त कानूनी प्रावधानों और भरोसा बहाल करने के अन्य कदम उठाए जाने के बावजूद अगर पुलिस अनिवार्य प्रक्रिया का अनुपालन करने में असफल होती है तो देश की फौजदारी न्याय प्रणाली में उचित न्याय देने में बाधा उत्पन्न होती है.’
राज्यों को जारी परमार्श में कहा गया, ‘ऐसी खामी का पता चलने पर उसकी जांच कर और तत्काल संबंधित जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए.’
भारतीय दंड संहिता की धारा 166
दिशा-निर्देशों में साफ कहा गया है कि अगर महिलाओं के खिलाफ अपराधों में अगर कोई चूक होती है तो मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी. भारतीय दंड संहिता की धारा 166 (ए) एफआईआर दर्ज न करने की स्थिति में पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत देता है. सीआरपीसी की धारा 173 के तहत दुष्कर्म के मामले में दो महीने के भीतर जांच पूरी करना जरूरी है.