अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस : आखिर क्या है इस दिन की खासियत ?
रायपुर। 21वीं शताब्दी में भारत के कई हिस्सों में आज भी लड़कियों के जन्म को स्वागत योग्य नहीं मानते हैं. लड़कियों को अपने जन्म से ही, जीवन के हर पड़ाव पर भेदभाव, उत्पीड़न, और अपमान का सामना करना पड़ता है. जब हम स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास के अवसरों की बात करते हैं तो लड़कियों से हमेशा भेदभाव किया जाता है. इनमें से कुछ लड़कियां जीवित रहने के लिए नए रास्तों का चयन भी करती हैं. लड़कियों के साथ भेदभाव अनियंत्रित है. दुर्व्यवहार और शोषण के डर की वजह से इन्हें स्कूल नहीं भेजा जाता है, घर पर ही रखा जाता है. वहीं, बाल विवाह अभी भी एक और ज्वलनशील मुद्दा बना हुआ है. जिसके कारण लड़कियों को कम उम्र में ही स्कूल छोड़ना पड़ता है.
बीजिंग घोषणा में पहली बार उठाया गया मुद्दा
संयुक्त राष्ट्र में 1995 में बीजिंग देशों में महिलाओं पर हुए विश्व सम्मेलन में सर्वसम्मति से बीजिंग घोषणा और प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन को अपनाया गया. बता दें, बीजिंग घोषणा में विशेष रूप से लड़कियों के अधिकारों को पहली बार उठाया गया था. वहीं, 19 दिसंबर, 2011 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दुनियाभर की लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों को पहचानने के लिए 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया.
उद्देश्य
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का मुख्य उद्देश्य लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने, उनके सशक्तिकरण और उनके अधिकारों की पूर्ति को बढ़ावा देने पर है. महत्वपूर्ण शुरुआती वर्षों के दौरान किशोर लड़कियां जब तक मैच्योर नहीं हो जाती तब तक उन्हें सुरक्षित, शिक्षित और स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है. यदि किशोरावस्था के दौरान लड़कियों को प्रभावी ढंग से समर्थन मिले तो वह दुनिया को बदलने की क्षमता रखती हैं. अगर ऐसा समर्थन मिला तो ये आज की सशक्त लड़कियों के रूप में और कल की श्रमिकों, माताओं, उद्यमियों, आकाओं, घरेलू प्रमुखों और राजनीतिक नेताओं के रूप में सामने आएंगी. किशोर लड़कियों की शक्ति को साकार करने में एक अच्छा प्रयास उनके अधिकारों को बढ़ाता और अधिक न्यायसंगत और समृद्ध भविष्य का वादा भी करता है.
दुनिया के तथ्य
दुनियाभर में 15 से 19 साल की 4 लड़कियों में से लगभग 1 को न तो शिक्षा दी जाती है और न ही उसी उम्र के 10 लड़कों की तुलना में शिक्षा या प्रशिक्षण दिया जाता है. बता दें, 2021 तक लगभग 435 मिलियन महिलाएं और लड़कियां एक दिन में 1.90 डॉलर से कम पर जीवन बिताएंगी. जिनमें COVID-19 के परिणामस्वरूप 47 मिलियन पहले ही गरीबी में धकेल दी गई हैं.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दुनियाभर में 3 में से 1 महिलाओं ने शारीरिक और यौन हिंसा झेली है. वहीं, आंकड़ों से पता चलता है कि COVID-19 के प्रकोप के बाद से महिलाओं और लड़कियों (VAWG) के विशेष रूप से घरेलू हिंसा के खिलाफ हिंसा मामलों में तेजी आई है. बता दें, कम से कम 60% देश अभी भी कानून या व्यवहार में भूमि और गैर-भूमि संपत्ति विरासत पाने के लिए बेटियों के अधिकारों से भेदभाव करते हैं.
चुनौतियां
बाल विवाह
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, विकासशील देशों (चीन को छोड़कर) में 3 लड़कियों में से एक की शादी संभवत: 18 साल की उम्र से पहले हो जाएगी. वहीं, आकड़ों से यह बात भी सामने आई है कि 9 में से 1 लड़की की शादी उनके 15वें जन्मदिन से पहले हो जाएगी. इनमें से ज्यादातर लड़कियां गरीब, कम पढ़ी-लिखी और ग्रामीण इलाकों में रहने वाली हैं.
2010 में 20 से 24 साल की 67 मिलियन से अधिक महिलाओं की शादी तब हुई थी जब वह लड़कियां थीं. बता दें, यह मामले आधे एशिया और अफ्रीका के एक-पांचवे भाग के थे. अगले दशक में 18 से कम उम्र की 14.2 मिलियन लड़कियों की शादी हर साल होगी. इसका मतलब है कि प्रतिदिन 39 हजार लड़कियों का विवाह होगा. 2021 से शुरु होकर 2030 तक यह आकड़ा यह एक वर्ष में औसतन 15.1 मिलियन लड़कियों तक पहुंच जाएगा.
शिक्षा की कमी
बता दें, इसका एक बड़ा कारण शिक्षा की कमी भी है. जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक दुनियाभर में 132 मिलियन लड़कियों ने स्कूल की शक्ल तक नहीं देखी हैं, जिनमें प्राथमिक स्कूल की 34.3 मिलियन लड़कियां, कम-माध्यमिक स्कूल की उम्र 30 मिलियन और उच्च-माध्यमिक स्कूल उम्र की 67.4 मिलियन लड़कियां शामिल हैं.
उत्पीड़न
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 30 देशों में 15 से 49 साल की कम से कम 200 मिलियन महिलाओं और लड़कियों को जननांग संबंधी बीमारियों से भी गुजरना पड़ा है. वहीं, दुनियाभर की लगभग 15 मिलियन किशोर लड़कियों (15 से 19 वर्ष की आयु) ने अपने जीवन में जबरन यौन संबंध का भी दंश झेला है. बता दें, यूरोपीय संघ की 10 महिलाओं में से एक ने 15 साल की उम्र के बाद से साइबर उत्पीड़न का भी दर्द महसूस किया है.
भारत में हाल
बाल विवाह
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आकड़ों से पता चलता है कि बाल विवाह की दर 1970 के दशक में 58% से घटकर 2015-16 में 21% हो गई है. इससे महिलाओं की विवाह की औसत आयु भी बढ़ रही है. 2005-06 में जहां महिलाओं की शादी की औसत आयु 17 वर्ष थी वहीं, 2015-16 में यह आयु 19 साल हो गई है. आकड़ों से यह भी जानकारी मिली है कि 45% अशिक्षित महिलाओं और प्राथमिक शिक्षित महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हुई.
शिक्षा की कमी
जनवरी 2019 में जारी 2018 एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) के अनुसार, 2018 में 15 से 16 के बीच की 13.5 प्रतिशत लड़कियों ने स्कूल में कदम नहीं रखा था, जो 2008 में 20 प्रतिशत से अधिक थीं.
उत्पीड़न
2018 में 21,605 बाल बलात्कार मामले दर्ज किए गए, जिनमें लड़कियों के 21,401 बलात्कार और लड़कों के 204, NCRB 2O19 मामले हैं.
जब हम लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा में निवेश करते हैं तो यह बदलाव होता है.
लड़कियों की जीवनभर की कमाई बढ़ती है.
राष्ट्रीय विकास दर में वृद्धि होती है.
बाल विवाह की दर में गिरावट होती है.
बाल मृत्यु दर में गिरावट होती है.
मातृ मृत्यु दर में गिरावट होती है.
बालिकाओं के लिए भारत सरकार की योजनाएं
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना.
सुकन्या समृद्धि योजना.
बालिका समृद्धि योजना.
सीबीएसई उदयन योजना