December 23, 2024

झांसी से गोरखपुर श्रमिक स्पेशल ट्रेन : 5 दिन तक शौचालय में ‘सफर’ करता रहा प्रवासी श्रमिक का शव

jhansi

झांसी।  कोरोना काल में मजदूरों की ऐसी दुर्गति कर दी है, जो कभी भी भूली नहीं जाएगी।  भूख, प्यास, इलाज के अभाव में बीमार प्रवासी मजदूरों की मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है।  बावजूद इसके प्रवासी मजदूरों की दुर्गती रुकने का नाम नहीं ले रही है। ऐसा ही एक मामला झांसी रेलवे यार्ड में खड़ी श्रमिक स्पेशल ट्रेन से जुड़ा है। इसके एक कोच के शौचालय में बीती रात मजदूर का शव मिलने से हड़कंप मच गया। 


पता चला कि लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूर गैर राज्य से लौटकर 23 मई को झांसी से गोरखपुर के लिए रवाना हुआ था। कई घंटों की देरी से चल रही ट्रेनों ने श्रमिक के सब्र का इम्तिहान लेना शुरू किया।  श्रमिक की रास्ते में ट्रेन के शौचालय में मौत हो गई।  ट्रेन गोरखपुर गई और लौट भी आई और उसका शव शौचालय में पड़ा रहा।  झांसी तक लौटकर वापस आ गया। 


23 मई को झांसी से गोरखपुर के लिए एक श्रमिक एक्सप्रेस रवाना हुई थी।  इस ट्रेन से जिला बस्ती के थाना हलुआ गौर निवासी मोहन शर्मा (38) भी सवार होकर गए थे।  वे मुंबई से झांसी तक सड़क मार्ग से आए थे।  यहां बॉर्डर पर रोके जाने के बाद उनको ट्रेन से गोरखपुर भेजा गया था।  वे जब चलती ट्रेन में शौचालय गए थे, तभी उनकी तबीयत बिगड़ गई और मौके पर उन्होंने दम तोड़ दिया।  ट्रेन के 24 मई को गोरखपुर पहुंचने के बाद उनके शव पर किसी की नजर नहीं पड़ी। 
इसके बाद ट्रेन के खाली रैक को 27 मई की रात 8.30 बजे गोरखपुर से झांसी लाया गया।  यार्ड में जब ट्रेन को सैनिटाइज किया जा रहा था, तभी एक सफाई कर्मचारी की नजर शौचालय में शव पर पड़ी।  सूचना पर जीआरपी, आरपीएफ, स्टेशन कर्मचारी व चिकित्सक मौके पर पहुंच गए।  जांच के बाद जीआरपी ने पंचनामा भरकर शव को पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कॉलेज भेज दिया।

  मजदूर के पास मिले आधार कार्ड के आधार पर उसकी पहचान की गई।  मजदूर के बैग व जेब से 28 हजार रुपये नकद मिले. साथ ही, एक मोबाइल नंबर मिला, जो गांव के सरपंच का था।  सरपंच की मदद से परिजनों को हादसे की सूचना दी गई. शव का सैंपल भी कोरोना जांच के लिए भेजा गया है। वहीं प्रवासी मजदूर की अंतहीन दास्तां में घोर लापरवाही निभाने वाले रेलवे के अधिकारियों ने इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साध ली।  रेलवे की चुप्पी से ऐसा लगा कि प्रवासी मजदूर की लाश ट्रेन में 5 दिन यात्रा करती रही, इसमें प्रवासी श्रमिक की ही गलती हो। 

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