आओ करें नेहरू की बात…पर उससे पहले विज्ञान को सलाम, अनुसंधान को सलाम…. – रुचिर गर्ग
आओ करें नेहरू की बात पर उससे पहले विज्ञान को सलाम, अनुसंधान को सलाम, भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान को सलाम, अंतरिक्ष अनुसंधान की एजेंसी इसरो को सलाम. चंद्रयान 3 सफलतापूर्वक प्रक्षेपित हो गया. इसकी सफलता के लिए इसरो के तमाम वैज्ञानिकों को सलाम. अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में भारत की यह छलांग महत्वपूर्ण है. किसी छलांग की तैयारी उसके पहले कदम से शुरू होती है बल्कि वहां से शुरू होती है, जहां उस छलांग का एक स्वप्नदृष्टा होता है.
हर ऐसी छलांग की एक लंबी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि होती है. इसरो की भी है, पर ना तो उस पृष्टभूमि की चर्चा होगी ना स्वप्नदृष्टा की. चर्चा उस व्यक्ति की होगी, जो देश को कूपमंडूकता के सड़े दलदल में धकेलने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा होगा. उसकी नहीं जिसने इस देश को आधुनिक सपने दिए. चर्चा उसकी होगी, जो एक प्रगतिशील देश को प्रतिगामी बनाने पर तुला हुआ है. उसकी चर्चा नहीं होगी, जिसने विश्वदृष्टि के साथ देश को दुनिया के साथ कदमताल करने के लिए खड़ा किया. चर्चा उसकी होगी जिसने ताली,थाली,घंटे बजवा कर विज्ञान को रौंदा और जग हंसाई करवाई.
उसकी चर्चा नहीं होगी, जिसने इस देश में ज्ञान और विज्ञान के विश्वस्तरीय केंद्र खोले, शिक्षा के बड़े–बड़े ऐसे केंद्र खोले, जहां से निकले शिक्षार्थी और शोधार्थी दुनिया में हिंदुस्तान का डंका पीट रहे हैं, लेकिन डंकापति को तो घंटा बजाने वाले चाहिए इसलिए यह दर्ज करना जरूरी है कि #indian_space_and_research_organisation #ISRO इसरो की छलांग का पहला कदम वर्ष 1962 में स्थापित #indian_national_committee_for_space_research ( इंडियन नेशनल कमेटी फ़ॉर स्पेस रिसर्च ) था. इसकी स्थापना अंतरिक्ष में भारत पहुंचे, इस मकसद के साथ की गई थी. इसकी स्थापना का श्रेय देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और प्रख्यात वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को है.
बाद में 1969 में भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग ने इसका नाम #ISRO किया. यह नाम नेहरू जी के निधन के पांच बरस बाद रखा गया और इसे ही इसरो की स्थापना का वर्ष माना जाता है इसीलिए भ्रम फैलाने के मकसद से यह कह दिया जाता है कि इसरो तो नेहरूजी के निधन के बाद स्थापित हुआ तो अंतरिक्ष यान प्रोजेक्ट से नेहरू का क्या लेना–देना. हालांकि इसरो की स्थापना के समय भी देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं और इस समय विश्वगुरु मगरमच्छ पकड़ रहे थे.
इसरो दरअसल अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नेतृत्व में स्थापित इंडियन नेशनल कमेटी फ़ॉर स्पेस रिसर्च का ही नया अवतार था और लक्ष्य वही, अंतरिक्ष में भारत के झंडे गाड़ना, विज्ञान को अंतरिक्ष की नई चुनौतियों के मुकाबले का अवसर प्रदान करना और दुनिया में विज्ञान की प्रगति के साथ अग्रिम पंक्ति पर मौजूद रहना था. यह नेहरू जी की विश्व दृष्टि थी. यह आधुनिक भारत के निर्माण का नेहरू मॉडल था, लेकिन आज इस देश के नेहरू विरोधी, रोज पानी पी पी कर नेहरू को कोसने वाले लोग अंतरिक्ष अनुसंधान में नेहरू जी की इस भूमिका को दफन करना चाहते हैं.
ये वो लोग हैं, जिन्हें विज्ञान के मुकाबले नफरत, अशिक्षा, मूढ़ता चाहिए, ताकि समाज कुतर्कों का शिकार रहे और ये अपना एजेंडा चलाते रहें इसीलिए आज ही यह चर्चा जरूरी है कि देश को कौन सा रास्ता चुनना चाहिए? विज्ञान,प्रगति,सद्भाव,एकता और अखंडता का या हिंदू– मुसलमान, नफरत, उन्माद, कूप मंडूकता और घंटा बजाते रहने का प्रतिगामी रास्ता?. एक रास्ता आपके हमारे बच्चों को जे–जे श्रीराम के नारे लगवा कर सत्ता हासिल करने के लिए, अपना नफरती एजेंडा लागू करने के लिए घृणा के हथियार में बदल देगा और दूसरा इसके मुकाबले एक स्वस्थ, आधुनिक, प्रगतिशील भारत का मार्ग प्रशस्त करने वाला होगा.
यह सवाल खासतौर पर देश के नौजवानों के सामने है. उन्हें देश की बेहतरी का रास्ता जानना ही चाहिए. बेरोजगार भीड़ को नफरत के हथियार में बदलना आसान है, लेकिन एक तर्कशील, विज्ञान सम्मत माहौल में ही देश का नौजवान जानेगा की बेहतरी की राह किधर है. इस रास्ते पर ही शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, अनुसंधान, प्रगति सब कुछ है इसलिए यह भी जानिए कि संघ प्रिय लोगों की लाख कोशिशों के बावजूद देश की हर ऐसी छलांग के साथ–साथ नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता के तौर पर सामने रहेंगे ही.
नेहरू मॉडल कभी भी किसी बहस या आलोचना से परे नहीं रहा. खुद नेहरू जी तर्क, आलोचना और सवालों के पक्षधर थे, लेकिन उस मॉडल में आधुनिकता थी, धर्मनिरपेक्षता थी, नफरत नहीं, इसलिए देश के नौजवानों को यह जानना चाहिए कि अंतरिक्ष की इस छलांग की बुनियाद रखने वाले नेहरू थे, विश्वगुरु नहीं. फिर से चंद्रयान की सफलता के लिए विज्ञान को सलाम, नेहरू जी को नमन और…मोदी जी को ? उन्हें विश्व भ्रमण मुबारक.
( लेखक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार हैं)