CG : मां का सच्चा प्यार, बच्चे की याद में कब्र तक खिंची चली आती है हथिनी, चिंघाड़ सुन भागते है लोग
अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में हर वर्ष एक हथिनी अपने बच्चे की कब्र के पास आकर जोर जोर से चिंघाड़ती है। कहते हैं कि मां खुद से ज्यादा अपने बच्चे से प्यार करती है. चाहे इंसान हो या बेजुबान, मां तो आखिर मां ही होती है. ऐसी ही एक दिल को छू लेने वाली कहानी छत्तीसगढ़ से सामने आई है. यहां बच्चे की जान जाने के बाद भी एक हथिनी उसे भूल नहीं पाई है. बच्चे की मौत के कई साल बाद भी हथिनी उसके कब्र तक खींची चली आती है. फिर हथिनी अपने बच्चे की कब्र के पास जोर जोर से चिंघाड़ती है. चिंघाड़ने की आवाज सुनते ही गांव के लोग अपने घरों को छोड़ भाग जाते हैं. ये कहानी है सरगुजा जिला मुख्यालय के अंबिकापुर से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर बसा गांव घंघरी के आश्रित मोहल्ला आसडांड की. 12 साल पहले आसडांड़ में रहने वाले ग्रामीण सुकून की जिंदगी बिता रहे थे।
जंगल के किनारे गांव होने के बावजूद लोगों को हाथियों का डर नहीं था. हाथियों का दल गांव जरूर पहुंचता था, लेकिन कुछ नुकसान नहीं पहुंचाता था. लेकिन एक रात आंसडांड के लोगों की जिंदगी में कहर आ गया. उश रात को याद कर ग्रामीण आज भी सहम उठते हैं. उस रात के बाद जब भी गांव में हाथियों की आमद होती है, गांव में तबाही होती है. दरअसल, 2012 में एक हथिनी के बच्चे की मौत हो गई थी।
बच्चे की याद में आती है हथिनी
दरअसल, जिस रात हथिनी के बच्चे की मौत हुई उस रात आसडांड में हाथियों का दल पहुंचा था. दल में हथिनी के साथ उसका बच्चा भी मौजूद था. इस दौरान एक ऐसी घटना घटी की हाथी के बच्चे की मौत हो गई. ग्रामीण बताते है कि हाथी का बच्चा गलती से कीटनाशक पी गया था. इसकी वजह से उसकी मौत हो गई. मौत के बाद हाथी के बच्चे के शव को उसी गांव के अमलीपतरा में दफन कर दिया गया. उस रात के बाद हर साल हथिनी अपने बच्चे की याद में उसके कब्र के पास पहुंचती है. फिर कब्र के पास हाथियों का दल चिंघाड़ने लगता है. चिंघाड़ने की आवाज सुनते ही ग्रामीण घर छोड़कर फरार हो जाते हैं. फिर महीनों तक हाथी गांव में डेरा जमाए रखते है. फिर तबाही मचाने के बाद चले जाते है.
ग्रामीण कहते है कि यह सिलसिला हर साल होता है. हाथी के जानकार रंजन टोप्पो की मानें तो हाथियों में संवेदनाएं देखी गई है. इसके साथ ही हाथियों की याददाश्त शक्ति बहुत तेज होती है. अगर हाथी का बच्चा उस गांव में दफन है तो मां हथिनी का उस जगह पर पहुंचना कोई संशय वाली बात नहीं है. अक्सर हाथियों के दल की मुखिया हथिनी को ही देखा गया है, जिसके इशारे में पूरा हाथियों का दल चलता है.