December 24, 2024

NCP का भी होता शिवसेना जैसा हाल! क्या एक इस्तीफे से शरद पवार ने चौपट किया अजित पवार का प्लान?

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मुंबई। शरद पवार ने अपनी बायोग्राफी ‘लोक माझे सांगाती’ के विमोचन के दौरान मंगलवार को एनसीपी के अध्यक्ष का पद छोड़ने का ऐलान जो किया उससे एक बात तो साफ हो गई कि अजित पवार जो खबरों में ज्यादा थे, बीजेपी के साथ उनके घुलने-मिलने की जो खबरें आ रही थीं, एनसीपी में जो बगावत की बात उछल रही थी, उन सब पर फिलहाल विराम लग गया है अगर ऐसा हो रहा था तो अब अब एक बार एनसीपी के सभी कार्यकर्ता और नेता ठिठक कर बैठ गए हैं. ऐसा लगता है कि अजित पवार अकेले सुर लगा रहे हैं.

इस वक्त एनसीपी में सभी शरद पवार से अपना फैसला वापस लेने की गुहार लगा रहे हैं. शरद पवार ने यह टेस्ट कर लिया है कि अजित पवार की पैठ कितनी है. शरद पवार ने यह देख लिया है कि अगर वे कोई बड़ा फैसला करते हैं तो पार्टी के नेता और कार्यकर्ता उनके पीछे खड़े हैं या नहीं? शरद पवार अपनी ताकत को भांप कर फूंक-फूंक कर कदम रखने वाले नेता हैं. अजित पवार इतनी तेजी से बड़े होते जा रहे थे कि शरद पवार भी कोने में लगाए जा सकते थे.

शिंदे की तरह कह सकते थे अजित पवार भी, उनका गुट ही असली एनसीपी
कहा जा रहा था कि आधी से ज्यादा एनसीपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर अजित पवार की पकड़ मजबूत हो चली थी और वे कभी भी शरद पवार के खिलाफ जा सकते थे. यह अलग बात है कि हाल ही में उन्होंने कहा था कि वे तब तक एनसीपी में बने रहेंगे जब तक जिंदा रहेंगे. लेकिन सवाल यह था कि एनसीपी मतलब क्या? अजित पवार का गेम प्लान कहीं वही तो नहीं जो गेम प्लान एकनाथ शिंदे का था? एकनाथ शिंदे ने कभी यह नहीं कहा था कि वे शिवसेना छोड़ रहे हैं, वे हमेशा कहते रहे कि उनका गुट ही असली शिवसेना है. अजित पवार एनसीपी में यही चाल चल रहे थे कि शरद पवार ने मास्टर स्ट्रोक खेलकर एनसीपी को एक कर दिया. अपना स्ट्रेंथ टेस्ट कर लिया.

उद्धव की गलती का शरद पवार ने किया जिक्र, उन्हें थी अपनी NCP की फिक्र
शरद पवार ने अपनी जिस ‘लोक माझे सांगाती’ नाम से लिखी ऑटोबायोग्राफी के विमोचन के दौरान अपने पद छोड़ने का ऐलान किया उसी किताब में उन्होंने उद्धव ठाकरे की गलतियों का जिक्र किया. कहीं इसलिए तो नहीं वे खतरे को पहले ही भांप गए? शरद पवार ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा है कि उद्धव ठाकरे इस तरह अनुभवहीन थे कि उन्हें क्या घट रहा है, कुछ पता नहीं था. शुक्र है कि अजित पवार के तजुर्बे की वजह से आघाड़ी सरकार चल रही थी. उद्धव ढाई सालों में सिर्फ दो बार मंत्रालय (सचिवालय) गए. शरद पवार लिखते हैं कि जब आप पार्टी या राज्य चलाते हैं तो आपको इसके हर छोटे-बड़े मामलों की जानकारी होनी चाहिए ताकि आप आने वाले संकट का उपाय कर सकें.

शरद पवार की हवाओं का रुख भांपने की हो सकती है यह चाल
शरद पवार जैसे तजुर्बेकार नेता को अगर यह समझ आ जाए कि उसकी पार्टी के अंदर ही अंदर कुछ तो चल रहा है, तो उनसे उद्धव ठाकरे वाली गलती की उम्मीद करना मूर्खता होगी. हो सकता है शरद पवार ने यह अंदाजा लगाने के लिए ही कि उनकी पार्टी में कौन-कौन किस तरफ है, यह चाल चली हो. एमएनएस के राजू पाटील और किसान नेता रघुनाथ दादा पाटील ने इस ओर इशारा भी किया है कि अफवाहों का बाजार गर्म था. उसकी थाह पाने के लिए और अफवाहों को विराम लगाने के लिए शरद पवार ने यह मास्टरस्ट्रोक खेला है. कार्यकर्ताओं का फैसले पर फिर से विचार करने का नौटंकी होगी और शरद पवार अपने फैसले वापस ले लेंगे. अगर शरद पवार अपने फैसले वापस नहीं भी लेते हैं तो सोनिया गांधी की तरह अपनी पार्टी के पर्दे के पीछे हाईकमांड बने रहेंगे.

सुप्रिया सुले के लिए जमीन तैयार; नहीं बंटा है, नहीं बंटेगा दीदी-दादा का प्यार
शरद पवार ने एक और चाल चल दी है. उन्हें यह एहसास है कि राज्य के संगठन में अजित पवार की पकड़ मजबूत है. इसलिए जो राजनीतिक पंडित यह समझ रहे हैं कि शरद पवार सुप्रिया सुले को राज्य की कमान सौंप सकते हैं, वे बहुत भोले हैं. शरद पवार यह गलती नहीं करेंगे. अगर ऐसा करेंगे तो एनसीपी को टूट से बचा नहीं सकेंगे. फिर उनके पद छोड़ने के ऐलान से कोई खास मकसद हल होता हुआ नजर नहीं आएगा.

सुप्रिया सुले खुद भी अपने कुछ इंटरव्यू में यह कह चुकी हैं कि उन्हें ऐसी राजनीति करनी पसंद है, जिनसे देश की पॉलिसी तय होती है. दूसरी तरफ अजित पवार को राष्ट्रीय राजनीति में कुछ खास इंटरेस्ट नहीं है. इसलिए शरद पवार अजित पवार के हाथों कमान देकर उन्हें राज्य की बागडोर सौंप सकते हैं और उन्हीं से सुप्रिया सुले की एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर चुनाव करवा सकते हैं. परिवारवाद स्मूथ तरीके से चलता रहेगा. दिल्ली में बागडोर बेटी सुप्रिया सुले के हाथ और राज्य का रथ भतीजे अजित पवार के हाथ रहेगा.

BJP के साथ जाने को तैयार तो शरद पवार खुद को नहीं दिखाना चाहते जिम्मेदार
शरद पवार ने अपनी किताब में एक और खुलासा किया है. उन्होंने कहा है कि 2019 में अजित पवार बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बना रहे थे, तब इसकी जानकारी उन्हें भी नहीं थी. अजित पवार ने दस विधायकों का समर्थन यह कह कर जुटा लिया था कि इसमें उनकी सहमति है, जो सच नहीं था. दूसरी तरफ देवेंद्र फडणवीस ने कुछ हफ्ते पहले यह दावा किया था कि शरद पवार को सारी जानकारियां थीं. यह सच्चाई है कि एनसीपी सत्ता के बिना नहीं रह सकती है. अगर बीजेपी के साथ सत्ता के लिए जाना पड़ा, तो एनसीपी को एक बहाना चाहिए.

शरद पवार वैसे बीजेपी के साथ नहीं जा सकते, अजित पवार को ढाल बना सकते
शरद पवार खुल कर अगर बीजेपी के साथ चले जाएं तो उद्धव ठाकरे को क्या जवाब देंगे? वे तब यह आसानी से कह सकते हैं कि उनके कंट्रोल में कुछ नहीं है. अजित पवार ने बगावत की है. जबकि शरद पवार कि इसमें सहमति हो सकती है. शरद पवार को कोई समझ पाए, यह नहीं किसी के बस की है. वो जो कहते हैं, वो कभी-कभार करते हैं, जो नहीं कहते, वो डेफिनेटली करते हैं. फिलहाल तो उन्होंने अपने अध्यक्ष पद को छोड़ने के फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला किया है. सबको यह जानने की उत्सुकता बनी रहेगी कि दो-तीन दिनों बाद उनका फाइनल कॉल क्या रहता है.

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