यह रेलगाड़ी है या बैलगाड़ी? टिकट वाले यात्रियों के लिए जगह ही नहीं, जानवरों का चारा ढो रहे हैं लोग
पटना। महानगरों में जन्म लेने वाले अमीर-उमरा व्यक्ति तो अक्सर हवाई जहाज से ही सफर करते हैं। कभी मजबूरी में ट्रेन से सफर करनी पड़े तो वे वंदे भारत एक्सप्रेस (Vande Bharat Express) या फिर राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस से नीचे नहीं उतरते हैं। ऐसे में वे जान नहीं पाते हैं कि भारतीय ट्रेनों में लोग कैसे-कैसे हालात में सफर करते हैं। बिहार के ट्रेन में आप जाएं तो आपको ट्रेन में लोग उपले-कंडे से लेकर पुआल और जंगली पेड़ या झाड़ी तक ढोते नजर आएंगे।
हम बिहार में चलने वाली पैसेंजर ट्रेन की बात कर रहे हैं। बिहार के अधिकतर इलाकों में आज देखें तो ट्र्रेन में गोइठा-कंडा, जंगल से काटी गई जलावन की लकड़ी, धान का पुआल और यहां तक कि बकड़ी-भेड़ तक की ढुलाई ट्रेनों से होती है। ऐसे में टिकट खरीद कर चलने वाले पैसेंजर्स को ट्रेन में सवार होने के लिए इस डिब्बे से उस डिब्बे तक भटकना पड़ता है।
यह तस्वीर पूर्व रेलवे (Eastern Railway) के मालदह डिवीजन के जमालपुर-भागलपुर-साहेबगंज रेल खंड में चलने वाले एक पैसेंजर ट्रेन या सवारी गाड़ी की है। यह ट्रेन जमालपुर जंक्शन से भागलपुर के बीच चलती है। यह जमालपुर से सुबह 10 बज कर 50 मिनट में चलती है। इस ट्रेन में आपको पुआल का बोझा, जंगली झाड़ियों को काट कर बनाया बोझा लगभग हर डिब्बे में दिख जाएगा।
जमालपुर से ट्रेन में लकड़ी का एक बोझा चढ़ाने वाली सितिया देवी ने बताया कि वे जमालपुर के काली पहाड़ी से लकड़ी काट कर लाती हैं। उसे ट्रेन से गनगनिया तक लेकर जाना है। इस झाड़ी की लकड़ी का क्या होगा, इस पर सितिया देवी बताती हैं कि इसका उपयोग जलावन के रूप में होगा। इससे खाना बनाया जाएगा। वह बताती हैं कि जाड़े के दिनों में ही इसे काट कर जमा करती हैं ताकि कुछ महीने तक ईंधन की समस्या हल हो जाए।
इस ट्रेन में आपको हर डिब्बे में पुआल का बोझा भी दिखेगा। पुआल का बोझा ले जाने वाले रामटहल मंडल ने बताया कि वे उरैन के पास लय-पवय से पुआल का बोझा खरीदते हैं। वहां यह सस्ता मिलता है। इसे लेकर अपने घर जाएंगे। इसे अपने गाय-बैलों को खिलाएंगे। रामटहल बताते हैं कि सुबह चार बजे ही घर से निकल कर पुआल खरीदने जाते हैं।
रेलगाड़ी को बैलगाड़ी बनाने वाले पैसेंजर्स रेलवे के लिए एक तरह से बोझ हैं। क्योंकि वे बेटिकट यात्री की तरह चलते हैं। वह रेलवे का टिकट नहीं लेते। लेकिन आप रेलवे सिस्टम में तो ऐसे चल नहीं सकते। यदि आपने ट्रेन में आपने कुछ बड़ा या भारी सामान चढ़ाया है तो आपको कुछ रुपये तो देने ही होंगे। ये रुपये वसूलने वाले ट्रेन के डिब्बे में अचानक ही प्रकट हो जाते हैं। इन्हें कौन रखता है, इस बात का खुलासा तो रेलवे ही कर सकता है।