November 15, 2024

रेलवे की नौकरी इतनी रास आई की घर को दिया ट्रेन के डिब्बे जैसा लुक

मुंबई।  मनुष्य जिस परिवेश में रहता है वह उसी में रम जाता है. इस कहावत को चरितार्थ किया है महाराष्ट्र के एक परिवार ने. रेलवे में नौकरी करने वाले रोहिदास शिंदे को यहां की आवो हवा इतनी रास आई कि उन्होंने रिटायरमेंट के बाद अपने घर को ट्रेन के डिब्बे का आकार दे दिया। 

शुरुआत में देखने पर लगता है कि उनके घर के पास कोई ट्रेन रुक गई है, लेकिन जब ध्यान से देखेंगे तो समझ आता है कि यह ट्रेन नहीं बल्कि डिब्बों की डिजाइन का ही घर है. इस तरह उन्होंने रिटायर होने के बाद भी अपने काम के प्रति लगाव और प्रेम को जताया है। 

वह कहते हैं कि रेलवे उनके लिए भगवान की तरह है. इस नौकरी ने उनके जीवन को सहज बनाया, परिवार को समृद्ध बनाया और उनके बच्चों को भी सफल बनाया. उन्होंने अपने घर का नाम ‘रत्न रोही’ एक्सप्रेस रखा है.

90 वर्षीय रोहिदास रेलवे हाउस में अपनी पत्नी के साथ रहते हैं. रोहिदास शिंदे 1950 में रेलवे में शामिल हुए और 1988 में रेलवे सेवा से सेवानिवृत्त हुए. शिंदे ने पुणे और हुबली डिवीजनों में अपनी सेवा दी. उनके सात बच्चे हैं.

वह बताते हैं कि शिंदे रेलवे क्वार्टर में एक छोटे से कमरे में अपने परिवार के साथ रहते थे, लेकिन पूरा परिवार दस बाई दस के कमरे में नहीं रह सकता था, इसलिए कुछ बच्चे रात में स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में सोते थे. ऐसे में रेलवे ही उनके परिवार के लिए एक बड़ा सहारा था.

ऐसे में उन्होंने अपने परिवार का पालन-पोषण किया. रेलवे की नौकरी में रहते हुए उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दी. इसलिए आज उनके सभी छह बच्चे सरकारी और निजी क्षेत्र में उच्च पदों पर कार्यरत हैं.

रोहिदास शिंदे रेलवे में नौकरी करने के बाद और सेवानिवृत्ति के बाद घर चाहते थे. सभी बच्चे अच्छी स्थिति में हैं, लेकिन उनके पास अपना घर होना चाहिए, इसलिए बच्चों ने सुभाष नगर में उनके लिए एक घर बनाया. 90 वर्ष की आयु में भी, वह 15 अगस्त, 26 जनवरी को मिराज रेलवे स्टेशन जाते हैं और ध्वजारोहण कार्यक्रम में भाग लेते हैं. नतीजतन, उनके बच्चों को भी रेलवे के प्रति रुझान की जानकारी थी.

मिराज पंचायत समिति के शिक्षा विभाग में सेवा दे रहे रोहिदास शिंदे के सबसे छोटे बेटे अनिल शिंदे का कहना है कि उनके पिता शुरू से ही रेलवे से प्यार करते हैं. सेवानिवृत्ति के बाद भी, रेलवे के लिए उनका प्यार कभी कम नहीं हुआ. रेलवे के प्रति प्रेम के कारण, मेरे पिता ने ईमानदारी से रेलवे की सेवा की और हम भाई-बहनों को इसका फल मिला. इसलिए हमें रेलवे पर भी बहुत गर्व है. हमेशा यह महसूस होता था कि हमें अपने पिता के लिए कुछ करना चाहिए. इसके बाद घर को रेलवे कोच में बदल दिया गया.  

error: Content is protected !!