April 26, 2024

कांकेर में मिला दुर्लभ प्रजाति की कालकूत छिपकली और ग्रीन कीलबैक सांप

कांकेर।  छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के अलग-अलग गांवों में जैव-विविधता रजिस्टर में दो और नए जीव जुड़ गए हैं. कोया भूमकाल क्रांति सेना रिसर्च टीम को बहुत से दुर्लभ प्रजाति के जीवों का पता चला है. इनमें से कुछ जीव तो ऐसे हैं जिसे कांकेर जिले में पहली बार रिपोर्ट किया गया है. इन दुर्लभ जीवों में छिपकली और सांप है. जो काफी दुर्लभ प्रजाति के माने जाते हैं. क्षेत्र के स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित कर इन जीव जंतुओं के रहवास का गूगल के जरिए लोकेशन टैग करने का काम किया जा रहा है.

कांनागांव में ग्राम बायोडायवर्सिटी बोर्ड (Village Biodiversity Board) के सदस्य व टीम के सदस्यों को भ्रमण के दौरान बहुत ही दुर्लभ प्रजाति के पीले रंग की धारियों से युक्त छिपकली देखने को मिली. इसे स्थानीय भाषा में कालकूत या ऐंहराज डोके कहा जाता है. फाउंडेशन ऑफ इकोलॉजिकल सिक्यूरिटी से जुड़े पर्यावर्णविद् नारायण मरकाम ने इस छिपकली के ट्रेस होने पर खुशी जाहिर की. उन्होंने बताया कि यहा जीव पूर्वी घाट में आमतौर पर पाया जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम Eastern Indian Leopard Gecko है. इसे तेंदुआ छिपकली या कालकूत भी कहा जाता है.

इसे गोंडी भाषा में एहरांज डोके भी कहते हैं. इसके शरीर का रंग अंचल में पाए जाने वाले एहरांज सांप की तरह पीले धारियों वाली होती है. यह जीव जलवायु परिवर्तन व मानसून के प्रति अत्यंत संवेदनशील जीव है. इसके बारे में गांव वालों के बीच बहुत से किंवदंती भी प्रचलित है. स्थानीय आदिवासी इनके व्यवहार को देखकर मानसून के आने की भविष्यवाणी भी करते हैं. राकेश कोर्राम, मोहन हिचामी , खिलेश हिचामी, कार्तिक उइके, संदीप सलाम व ग्रामवासियों की भ्रमण टीम ने इस छिपकली को दखा.

जिला मुख्यालय से सटे मलाजकुडुम गांव में एक दुर्लभ प्रजाति का सांप भी दिखा है. जिसे टीम के किशन मंडावी, योगेश नरेटी व ग्रामवासियों की टीम ने प्रसिद्ध मलाजकुडुम झरने के पास रिकॉर्ड किया है. पर्यावरणविद नारायण मरकाम ने बताया कि यह ग्रीन कीलबैक सांप है. इसे ढोरिया सांप भी कहते हैं. यह हरे रंग का होता है. जिसके सिरपर काले पीले रंग की सुंदर वी अक्षर की धारियां होती है. मादा सांप एक बार में 8 से 12 की संख्या में अंडे देती है. सांप की इस प्रजाति को भी जिले में पहली बार रिकॉर्ड किया गया है. कुछ दिनों पहले इसे कोंडागांव जिले के केशकाल घाटी में भी रिकॉर्ड किया गया था.

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