सुकमा : 12 वर्षों में एक बार लगता है ऐतिहासिक मड़ई मेला, युद्ध में मिली जीत की खुशी में किया जाता है आयोजन
सुकमा। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर (Bastar) संभाग यहां रहने वाले आदिवासियों की अनोखी परंपरा, रीति रिवाज, वेशभूषा और संस्कृति के लिए पूरे देश में जाना जाता है. यहां गांव-गांव में लगने वाला मड़ई मेला (Madai Mela) और बस्तर दशहरा विश्व भर में प्रसिद्ध है. यही नहीं इन त्यौहारो में निभाई जाने वाली रस्में भी पूरे विश्व में अलग ही पहचान रखती है. नए साल के जनवरी महीने से अलग-अलग ग्रामीण अंचलों में मड़ई मेले की शुरुआत हो जाती है।
इस साल सुकमा (Sukma) जिले में करीब 12 साल बाद ऐतिहासिक राज मड़ई मेला लगा है. इसमें 500 गांव के देवी देवताओं के छत्र और डोली शामिल हुई है. इस मड़ई मेले को लगाने के पीछे एक खास वजह है. इसे यहां रहने वाले आदिवासी सैकड़ों सालों से लगाते आ रहे हैं. इस मेले में कई तरह की रस्में भी निभाई जाती है. इस साल भी मेले के सभी रस्में को बखूबी निभाई जा रही हैं. 9 अप्रैल को सुकमा जिले के इष्ट देवी रामारामीन माता के नगर भ्रमण से मेले की शुरुआत हई. ये मेला चार दिनों तक लगता है. चार दिन तक चलने वाले इस मेले का आज आखिरी दिन है।
युद्ध में मिली जीत की खुशी में होता है आयोजन
दरअसल 12 साल में एक बार लगने वाले सुकमा राज मड़ई मेले में रियासत काल से चली आ रही आदिम संस्कृति, परंपरा और रीति-रिवाज का अनोखा संगम देखने को मिलता है. इस मेले में सिर्फ छत्तीसगढ़ के सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और बस्तर जिले से ही नहीं बल्कि उड़ीसा राज्य के भी सैकड़ों लोग शामिल होते हैं. सुकमा शहर में आयोजित होने वाले इस मेले में 16 परघना के कुल 500 गांव के देवी देवता शामिल होते हैं. इस मेले में केरलापला और कोर्रा परगना आयोजक की भूमिका निभाते हैं. रामारामीन मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मेला जीत की खुशी में मनाया जाता है. दरअसल सुकमा रियासत और जैपुर रियासत के बीच कई सालों तक युद्ध हुआ था. जिसमें सुकमा रियासत को जीत मिली थी. इस युद्ध में जिले के कोर्रा और केरलापाल परगना के लोगों ने सुकमा रियासत के तत्कालीन राजा को सैनिक, हथियार और अनाज के साथ आर्थिक मदद कर उनकी जीत में अहम भूमिका निभाई थी. इसी जीत की याद में 12 साल में एक बार सुकमा राज मड़ई मेले का आयोजन किया जाता है।
मेले में 3 देवियों का होता है मिलन
जानकार बताते हैं कि इस ऐतिहासिक मेले में तीन देवियों का मिलन होता है. सुकमा जिले की कुल देवी चिट्टमिटीन, रामारामिन, छिंदगढ़ की मसूरिया और ओड़िसा मलकानगिरी की मावली माता तीनों बहनें मिलती हैं. इसके अलावा उनके भाई बालराज,पोतराज और कमलराज भी इस मेले में शामिल होते हैं. मड़ई संचालन समिति के अध्यक्ष रामराजा मनोज देव बताते हैं कि इस मेले के आयोजन के पीछे का उद्देश्य शहर में अध्यात्मिक शांति, अमन चैन और समृद्धि है. 9 अप्रैल को क्षेत्र के विधायक और प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने इस मेले का शुभारंभ किया।
बीते रविवार को मड़ई स्थल पर चिट्टमिटिन माता का नगर जुलूस, झांकी और विशेष पदघानी के साथ छत्र स्थापित किया गया. वहीं सोमवार को अलग-अलग कुल 500 गांव से पहुंचे देवी देवताओं का स्वागत किया गया. इसके अलावा मंगलवार को महीसम्मा मुत्तेलम्मा, पूजा विधान, देवीलाट खप्पर भ्रमण और परंपरागत जात्रा का आयोजन हुआ. वहीं आज बुधवार को इन देवी देवताओं की विदाई की जा रही हैं।. इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया, जिसमें बॉलीवुड की मशहूर सिंगर हेमा सरदेसाई, शबरी लोक कला मंच सुकमा, तेलंगाना ,झारखंड और ओडिशा के कलाकारों ने रंगारंग प्रस्तुति दी।