March 21, 2025

कुंवारी लड़कियों से मार खाने का पूरा गांव करता है इंतजार, 300 सालों से है यह रिवाज, जानें क्या है इसका कारण

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जांजगीर-चांपा। 14 मार्च को पूरे देश में होली का त्योहार धूमधाम से मनाया गया और 19 मार्च को रंग पंचमी का उत्सव मनाया गया। इस खास दिन को छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के पंतोरा गांव में विशेष रूप से लट्ठमार होली खेली जाती है। यहां की परंपरा के अनुसार, रंग पंचमी के दिन राधा के गांव बरसाने की तर्ज पर लट्ठमार होली की अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘डंगाही होली’ कहा जाता है। ये परंपरा गांव की पहचान है।

कुंवारी कन्याएं बरसाती हैं लाठियां
पंतोरा गांव में हर साल रंग पंचमी के दिन विशेष रूप से लट्ठमार होली का आयोजन होता है, जिसमें गांव की कुंवारी कन्याएं बांस की छड़ियां लेकर लोगों पर बरसाती हैं। यहां के ग्रामीणों का मानना है कि इस छड़ी से मार खाने से बीमारियां दूर होती हैं। इस परंपरा का विशेष महत्व है और इसे हर साल श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।

कई सालों से चली आ रही है परंपरा
बलौदा ब्लॉक के पंतोरा गांव में स्थित मां भवानी मंदिर के परिसर में रंग पंचमी के दिन पूजा और उत्सव के दौरान यहां के ग्रामीण जुटते हैं। इस बारे में बैगा दीपक राम ने बताया कि यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। वे बताते हैं कि रंग पंचमी से एक दिन पहले शाम को, ग्रामीणों द्वारा कोरबा जिले के मड़वारानी के जंगल से बांस की छड़ी लाई जाती है। खास बात यह है कि इस छड़ी का चयन इस प्रकार से किया जाता है कि इसे एक ही कुल्हाड़ी से काटा जा सके। इसके बाद इस छड़ी की पूजा की जाती है और यह कामना की जाती है कि गांव में कोई बीमारी न फैले।

सालभर ग्रामीण करते हैं इंतजार
वहीं, पूजा के बाद गांव की कुंवारी कन्याएं इस छड़ी को पांच बार मां भवानी के समक्ष स्पर्श कराती हैं, फिर वही छड़ी बरसाई जाती है। इस अनूठी परंपरा में हिस्सा लेने के लिए पंतोरा के सभी ग्रामीण साल भर इंतजार करते हैं और इस दौरान एक अद्वितीय आस्था का प्रदर्शन होता है।

परंपरा को संजोकर रखना चाहते हैं ग्रामीण
पंतोरा के लोग इस परंपरा को अपनी पहचान मानते हैं और इसे अगली पीढ़ी को भी संजोकर रखने की कड़ी मेहनत करते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि जबसे यह परंपरा शुरू हुई है, तबसे गांव में कोई गंभीर बीमारी नहीं आई है और इस परंपरा की वजह से हर साल गांव में सुख-शांति बनी रहती है। इस प्रकार, पंतोरा गांव की लट्ठमार होली न केवल सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, बल्कि यह गांव की एकता और आस्था का प्रतीक भी है। लोगों का मानना है कि यह परंपरा करीब 300 सालों से चली आ रही है।

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