VIDEO – पुण्यतिथि विशेष : मौत के 40 साल बाद भी अपने गीतों के जरिए दिलों में जिंदा हैं रफी साहब
मुंबई। मोहम्मद रफी, हिंदी सिनेमा का वो अनमोल हीरा जिसकी चमक बरकरार है. उनकी बेमिसाल गायकी और शालीन अंदाज का हर कोई कायल है. उनकी जादुई आवाज आज भी कानों में गूंजती है. कहा जाता है कि उन्हें गाने की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी. 24 दिसंबर 1924 को एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में रफी एक फकीर के गीतों को सुना करते थे।
उसी फकीर से प्रेरणा लेकर उनके दिल में गाने के प्रति आकर्षण बढ़ा. 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए. आज भी जब उनके गीत कानों में गुंजते हैं मन मंत्र मुग्ध हो जाता है. मौत के 40 साल बाद भी रफी अपने गीतों के जरिए हमारी जिंदगी को छूते हैं. उनकी पुण्यतिथि पर एक नजर उनके ऐसे गानों पर जो हमेशा सदाबहार और यादगार रहेगें.साल 1960 में आई विजय आनंद निर्देशित ‘काला बाज़ार’ के गीत ‘खोया खोया चांद…’ को देव आनंद और वहीदा रहमान पर फिल्माया गया है. यह गीत आज भी सभी का पसंदीदा है.
राजेश खन्ना अभिनीत ‘द ट्रेन’ के ‘गुलाबी आंखें जो तेरी देखी…’ गीत को आरडी बर्मन ने संगीतबद्ध किया था. इसमें मदमस्त कर देने वाली आवाज थी रफी साहब की. यह गीत आज भी सभी को थिरकने पर मजबूर कर देता है.
साल 1971 की फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ का गीत ‘नफरत की दुनिया को छोड़ के’ आज भी सभी का पसंदीदा है. रफी साहब की दर्द भरी आवाज से सजा यह गीत जानवर और इंसान के बीच प्यार को बयां करता है.
शम्मी कपूर के शानदार अभिनय से सजी साल 1969 की फिल्म ‘प्रिन्स’ का गीत ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए’ आज भी जब सुनाई देता है तो रफी साहब की मदमस्त आवाज में हर कोई डूब जाता है.
मोहम्मद रफी साहब ने लगभग 700 फिल्मों के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं में 26,000 से भी ज़्यादा गीत गाए हैं. उन्होंने अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाओं के गानों में भी अपनी आवाज दी. वर्ष 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा था.बता दें कि जिस दिन रफी साहब का निधन हुआ था उस दिन मुंबई में जोरों की बारिश हो रही थी. उनके लिए लोगों की मोहब्बत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब मुंबई में रफी का जनाजा निकाला गया तो उसमें करीब 10 हजार लोग शामिल हुए थे. रफी के गुजर जाने पर दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था.