CG : कौन हैं बलिराम कश्यप, जिन्हें PM मोदी मानते हैं अपना गुरू, नक्सलगढ़ में बनाया था BJP का जनाधार
रायपुर। PM Modi Guru Baliram Kashyap: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को छत्तीसगढ़ के बस्तर में आने वाले आमाबाल गांव पहुंचने वाले हैं, आम गांवों की तरह ही दिखने वाला यह गांव बहुत खास है, जिसके चलते पीएम मोदी इसी गांव से छत्तीसगढ़ में प्रचार की शुरुआत करने जा रहे हैं. क्योंकि यह इलाका बीजेपी के दिवंगत नेता बलिराम कश्यप का है, जिन्हें पीएम मोदी अपना गुरू मानते हैं. वहीं बलिराम कश्यप जो नक्सलगढ़ में आज भी बीजेपी के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं, जिन्होंने बस्तर में बीजेपी को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी. जिसके चलते पीएम मोदी विधानसभा की तरह लोकसभा चुनाव की शुरुआत भी बस्तर से ही करने जा रहे हैं.
कौन हैं बलिराम कश्यप : बस्तर संभाग के भानपुर में 11 मार्च 1936 में जन्में बलिराम कश्यप पेशे से शिक्षक थे, लेकिन नीति उन्हें राजनीति की धारा में मोड़ ले आई. सबसे पहले वह जनसंघ की विचारधारा से प्रभावित हुए और सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में रम गए. उस वक्त नक्सल प्रभावित बस्तर में जनसंघ का ज्यादा प्रभाव नहीं था. लेकिन आदिवासी नेता बलिराम कश्यप बस्तर में जनसंघ और बाद में बीजेपी के लिए किंगमेकर साबित हुए. जिस तरह महेंद्र कर्मा बस्तर में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता बने उसी तरह बलिराम कश्यप बीजेपी के प्रमुख नेता बनकर उभरे थे.
ऐसा रहा राजनीतिक करियर : बलिराम कश्यप 1972 में पहली बार विधायक बने थे, इसके बाद वह 1992 तक मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे हैं, इस दौरान 1977 से 78 तक वह प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे. 1998 में वह पहली बार 1998 में लोकसभा सदस्य चुने गए थे. अविभाजित मध्य प्रदेश में बीजेपी के प्रभारी रहते हुए पीएम मोदी की मुलाकात इसी दौरान बलिराम कश्यप से हुई थी. बलिराम कश्यप चार बार 1998, 1999, 2004 और 2009 तक लगातार सांसद रहे.
पीएम मोदी ने बताया था गुरू : 3 अक्टूबर 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बस्तर से ही विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रचार की शुरुआत की थी. तब उन्होंने कहा था बस्तर की धरती पर आऊं और बलिराम कश्यप की याद न आए ऐसा नहीं हो सकता है. पीएम ने कहा था कि जब वह छत्तीसगढ़ के प्रभारी थे तो जब भी बस्तर के दौरे पर आते थे, तो बलिराम कश्यप के साथ ही सब जगह जाते थे. वह बस्तर में मेरे गुरू थे. बलिराम कश्यप की खास बात यह थी कि वह जनता से सीधा संवाद करते थे, मैं बस्तर दौरे के दौरान हमेशा उनके साथ रहता हूं, बस्तर में आज भी उनका जनाधार है. पीएम मोदी के इस भाषण के बाद ही लोग उन्हें उनका गुरू कहते हैं.
नक्सलियों ने की थी बेटे की हत्या : बलिराम कश्यप की सबसे बड़ी बात यह थी कि वह मुखरता से अपनी बात रखते थे. बस्तर के जंगली और दूरदराज अंचलों में वह लोगों के बीच पहुंचते थे और उनसे संवाद करके उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते थे. इसी के चलते वह तेजी से छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय हुए थे. लेकिन उनकी यह लोकप्रियता नक्सलियों की आंख की किरकिरी बनने लगी थी. नक्सलवाद का लगातार विरोध करने की वजह से वह माओवादियों के निशाने पर रहते थे. 2009 में उनके बेटे तानसेन कश्यप की नक्सलियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. बेटे की मौत के बाद भी वह कभी नक्सलियों से दबे नहीं और हमेशा मुखरता से उनका विरोध करते रहे थे.
बस्तर में बनाया बीजेपी का जनाधार : छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में कांग्रेस की मजबूत पकड़ मानी जाती थी. बस्तर संभाग की ज्यातादर सीटों पर कांग्रेस को जीत मिलती थी, लेकिन बलिराम कश्यप ने इस क्षेत्र में धीरे-धीरे बीजेपी का जनाधार बनाना शुरू किया , 1990 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बस्तर में बीजेपी को पहली बार मजबूती दिलाई. 2003 के पहले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बस्तर की 12 में से 9 सीटें जीतकर सरकार में बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. इसी तरह 2008 बीजेपी को 12 में से 11 सीटें फिर से मिली थी. इस बार बीजेपी की सीटें दो बढ़ गई थी. लेकिन 2011 में बलिराम कश्यप के निधन के बाद स्थिति बदली और 2013 के चुनाव में भले ही बीजेपी की राज्य में वापसी हुई लेकिन बस्तर में उसका प्रदर्शन फीका रहा, जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 12 में से महज 1 सीट पर जीत मिली थी. यही वजह है कि 2023 के विधानसभा चुनाव की शुरुआत पीएम मोदी ने बस्तर से की थी.
सरकार में मंत्री हैं बेटे केदार कश्यप : छत्तीसगढ़ और बस्तर में बलिराम कश्यप की सियासी विरासत को उनके बेटे केदार कश्यप आगे बढ़ा रहे हैं, वह फिलहाल विष्णुदेव साय सरकार में मंत्री हैं, जबकि रमन सरकार में भी केदार कश्यप मंत्री रह चुके हैं. केदार कश्यप 2003 से 2013 तक लगातार तीन बार विधायक बने थे. हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन 2023 में उन्होंने नारायणपुर विधानसभा सीट पर फिर से वापसी की और साय सरकार में मंत्री बने.