ज्वाइंट अकाउंट से ATM तक होनी चाहिए पत्नी की पहुंच, SC ने पुरुषों को दी पत्नियों के त्याग को पहचानने की नसीहत
नई दिल्ली। नारी के बिना सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। भारतीय संस्कृति में नारी को त्याग की मूर्ति कहा जाता है लेकिन हम उनके त्याग को मानो भूल ही जाते हैं। ऐसे में आज सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा महिला के केस में फैसला सुनाते हुए महिलाओं के अधिकारों पर प्रकाश डाला है। कोर्ट ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि भारतीय पुरुष गृहिणियों की भूमिका और उनके त्याग को पहचाने। इसके साथ ही कोर्ट ने शादीशुदा महिलाओं को आर्थिक तौर पर मजबूत करने पर जोर दिया।
कोर्ट ने सुझाए कुछ उपाय
भारतीय परिवारों में गृहिणी की भूमिका को अंडरलाइन करते कोर्ट ने कहा कि हम इस बात पर जोर देते हैं कि पतियों के लिए अपनी पत्नियों को आर्थिक सहायता प्रदान करना जरूरी है। व्यावहारिक उपाय जैसे संयुक्त बैंक खाते बनाए रखना और एटीएम एक्सेस साझा करना ताकि घर में महिलाओं की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो सके।
तलाकशुदा मुस्लिम महिला के केस में कोर्ट ने की ये टिप्पणी
दरअसल आज जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच तलाकशुदा मुस्लिम महिला के केस में सुनवाई करते हुए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत पति से गुजारा भत्ता मांगने को उचित बताया है। कोर्ट ने कहा कि सभी शादीशुदा महिलाओं पर गुजारा भत्ता मांगने का कानून लागू होता है चाहे फिर वो महिला किसी भी जाति की हो या धर्म की। कोर्ट ने साफ कह दिया कि गुजारा भत्ता देना कोई दान नहीं बल्कि शादीशुदा महिलाओं का मौलिक अधिकार है।
दरअसल, यह पूरा मामला अब्दुल समद नाम के व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। बीते दिनों तेलंगाना हाईकोर्ट ने अब्दुल समद को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश था। इस आदेश के विरोध में अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। अब्दुल ने अपनी याचिका में कहा कि उनकी पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत उनसे गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है। उसे मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 अधिनियम के अनुरूप चलना होगा।