December 22, 2024

दंतेश्वरी के दरबार में फागुन मेले की धूम, मंदिर में जुट रही भक्तों की भीड़

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दंतेवाड़ा। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में भी श्रीकृष्ण की नगरी ब्रज में एक माह की होली की ही तरह दस दिन तक होली का उत्सव चलता है। खास बात यह कि यहां होली में रासायनिक रंगों का नहीं बल्कि टेसू के फूलों के रंग इस्तेमाल होता है। दशहरा की तरह होली पर्व भी बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की आस्था से जुड़ा हुआ पर्व है। दंतेवाड़ा में फागुन मड़ई (मेला) लगता है, जो कि होली से दस दिन पहले शुरू हो जाता है। आसपास के गांवों के अलावा ओडिशा से भी ‘देवी-देवता’ इसमें शामिल होंगे। दस दिनों तक माई जी की पालकी मंदिर से निकलकर संध्या भ्रमण करती है। फाग गीतों से सराबोर इस उत्सव में आदिवासियों के परंपरागत आखेट नृत्य आकर्षण का केंद्र होते हैं। इनमें लमहा मार, गौर मार, कोडरी मार और चीतल मार लोकप्रिय हैं। इन शिकार नृत्यों में आदिवासी ही वन्यजीव बनते हैं और शिकार का स्वांग किया जाता है।
यह मेला आस्था, प्रकृति और परंपरा का संगम है। आखिरी दिन माई जी के मंदिर में टेसू के फूलों से बनाए गए रंगों से होली खेली जाएगी। आखेट नृत्यों के अलावा फागुन मड़ई की आंवरामार रस्म भी महत्वपूर्ण है। ब्रज में जहां लठामार होली खेली जाती है, यहां आंवरामार होली होती है। ग्रामीणों के दो समूह बना दिए जाते हैं जो एक-दूसरे पर आंवला फेंककर होली खेलते हैं। मड़ई में छह सौ देवी-देवता पहुंचते हैं। मान्यता है कि माई जी इन्हीं देवी-देवताओं के साथ टेसू के रंग से होली खेलती हैं। होलिका दहन के लिए सात तरह की लकड़ी ताड़, बेर, साल, पलाश, बांस, कनियारी और चंदन का इस्तेमाल किया जाता है। सजाई गई लकड़ियों के बीच मंदिर के पुजारी केले का पौधा रोपकर गुप्त पूजा करते हैं।
होलिका को आठ दिन पहले दंतेश्वरी तालाब में धोकर भैरव मंदिर में रखे गए ताड़ पत्तों से आग लगाई जाती है। आग की लौ के साथ उड़कर गिर रहे जलते ताड़ पत्रों की राख को पवित्र मानकर ग्रामीण्ा एकत्र कर घर ले जाते हैं। सुख-समृद्धि के लिए इन पत्तों का ताबीज बनाकर पहनते हैं। दंतेश्र्वरी मंदिर के पुजारी हरेंद्रनाथ जिया बताते हैं कि प्रचलित कथा के अनुसार सैकड़ों साल पहले बस्तर की एक राजकुमारी को किसी दुश्मन ने अगवा करने की कोशिश की थी। राजकुमारी ने अपनी अस्मिता बचाने के लिए मंदिर परिसर में आग जलवाई और मां दंतेश्र्वरी का नाम लेते हुए आग में कूद गई। राजकुमारी की कुर्बानी को यादगार बनाने के लिए उस समय के राजा ने सती स्तंभ बनवाया। इस स्तंभ को ही सती शिला कहते हैं। इसी शिला के पास ही राजकुमारी की याद में होलिका दहन किया जाता है।  छत्तीसगढ़ के दक्षिण में है बस्तर संभाग। इसके दक्षिण में दंतेवाड़ा जिला। मुख्यालय में होली के मौके पर नौ दिवसीय मेला लगता है। किंवदंती है कि यहां सती के दांत गिरे थे। यहीं माता दंतेश्वरी का प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है। यहां पहुंचने के लिए रेल और हवाई मार्ग से राजधानी रायपुर आना होगा। यहां से दंतेवाड़ा की दूरी करीब 400 किमी है। यहां तक हर दो घंटे में बसें उपलब्ध हैं। टैक्सी से भी पहुंचा जा सकता है। यहां ठहरने के लिए होटल और दंतेश्वरी मंदिर की धर्मशाला है, जहां सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। खाने में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन मिलता है।

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