छत्तीसगढ़ की पहली महिला जिसने डीएनए टेक्नालॉजी में की पीएचडी
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की डॉ.वीणा नायर, उम्र 29 वर्ष। पेशा हाई कोर्ट में वकालत। वीणा ने डीएनए टेक्नालॉजी में पीएचडी की उपाधि हासिल की है। इस उपलब्धि के साथ वह छत्तीसगढ़ की पहली महिला बन गई हैं जिन्होंने इस विषय पर पीएचडी की। वीणा की यह उपलब्धि इसलिए भी खास है कि केंद्र सरकार डीएनए टेक्नालॉजी संबंधी बिल को पारित कराने के प्रयास में है। वीणा ने अपने रिसर्च का पूरा दस्तावेज लोकसभा को प्रेषित कर दिया है। जाहिर है इस महत्वपूर्ण विषय पर कानून बनाने में केंद्र सरकार को उनके रिसर्च से मदद भी मिलेगी।
वीणा को मैट्स यूनिवर्सिटी ने 24 फरवरी 2020 को पीएचडी की उपाधि प्रदान की। वीणा बताती हैं कि इस तकनीक पर रिसर्च करते वक्त उन्होंने दर्जनों रिफरेंस देखे, विशेषज्ञों से चर्चा की। तब कहीं जाकर मुकाम हासिल हुआ। डीएनए टेक्नालॉजी के जरिये विधि के क्षेत्र में रिसर्च के माध्यम से क्या कुछ किया जा सकता है इस संबंध में भी उन्होंने महत्वपूर्ण शोध किया है।
उन्होंने कहा कि अनुवंशिक इंजीनियरिंग एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा वैज्ञानिक एक जीव के जीनोम को संशोधित करते हैं। इसमें रेकॉम्बीनैंट डीएनए टेक्नालॉजी का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में आनुवंशिक पदार्थों डीएनए तथा आरएनए के रसायन में परिवर्तन कर उसे मेजबान जीवों (होस्ट आर्गेनिज्म) में प्रवेश कराया जाता है। इससे इनके लक्षणों में परिवर्तन आ जाता है। रिसर्च में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि प्रथम रेकॉम्बीनैंट डीएनए का निर्माण साल्मोनेला टाइफीमूरियम के सहज प्लाज्मिड में प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन के जुड़ने से हो सका था।
रिसर्च के अनुसार डीएनए तकनीक का अच्छा खासा उपयोग फसलों के उत्पादन और प्रतिरोधी क्षमता के इस्तेमाल में किया जा सकता है। फसलों के उत्पादन में आनुवंशिक इंजीनियरिंग का उपयोग कर रोग एवं कीटों से प्रतिरोधी फसलों को प्राप्त किया जा सकता है।
डीएनए तकनीक द्वारा मनुष्य के आनुवंशिक रोगों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। अगर समस्या उत्पन्न् करने वाले जीन का सही जानकारी मिल जाए तो उसे डीएनए या संभव हो तो जीनपूल से दूर किया जा सकता है। आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग पशुपालन में करके विभिन्न् प्रकार की उन्न्त किस्में को प्राप्त किया जा सकता है।
डॉ. वीणा नायर ने बताया कि कई अपराधों को सुलझाने के लिए फोरेंसिक टेक्नालॉजी का प्रयोग डीएनए तकनीक के जरिए किया जा सकता है। इस तकनीक का प्रयोग सिविल मामलों को सुलझाने के लिए भी किया जा सकता है जिनमें बच्चों के जैविक माता-पिता की पहचान, इमीग्रेशन मामले और मानव अंगों के ट्रांसप्लांट इत्यादि भी शामिल हैं।