प्रवासी मजदूरों पर रमन ने सरकार को घेरा, मजदूरों की समस्या को लेकर हाईपावर कमेटी का दिया सुझाव
रायपुर। उड़ीसा सरकार ने बस्तर से सटी सीमा को सील नहीं किया है. कलेक्टर से आग्रह है कि मजदूर जहां हैं वहीं उन्हें रोके. उनके खाते में एक हजार रुपये भेजे. वहीं सरकार एक हाईपावर कमेटी बनाए, जिसमें वहां के जनप्रतिनिधि हो, स्थानीय अधिकारी हो, जो रोज इनकी जांच पड़ताल कर सके. यह बात पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने लॉकडाउन में बस्तर अंचल के लोगों की समस्या पर चर्चा करते हुए मीडिया से कही।
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि उड़ीसा, वेस्ट बंगाल से लोग प्रवेश कर रहे उन पर रोक लगाई जाए. राज्य के जिलाधीशों से बात कर उन्हें वहीं रोकना चाहिए, बस के माध्यम से लाने का प्रयास करना चाहिए. उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से आग्रह किया कि मजदूरों को बड़े-बड़े आश्रम, छात्रावासों में रखा जाए. सबको चिन्हांकित करके उनके भोजन-राशन की व्यवस्था की जाए. उन्होंने बस्तर के लिए डॉक्टरों की मोबाइल टीम बनाने आग्रह किया. जिसके पास जिलों की जानकारी होनी चाहिए. इसके साथ ही जिला अस्पताल में मजदूरों के लिए बिस्तरों के रिजर्व रखने को कहा.
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि लॉकडाउन में सबसे पीड़ाजनक कहानी जमलो मड़कम की है. तेलंगाना प्रवास में गए बिना खाए-पिए रवाना होती है, और रास्ते में दम तोड़ देती है. दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर जिलों के आंकड़े देखे तो कम से कम 40 से 50 हजार मजदूर प्रदेश के सीमावर्ती तेलंगाना, सीमांध्र उड़ीसा और महाराष्ट्र लगे हुए जिलों में खेती-मजदूरी के लिए जाते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण वे बिना पैसे के लौट रहे हैं. ठेकेदारों ने उन्हें भगा दिया.
उन्होंने कहा कि एक आंकड़ा अभी मुझे मिला, जिसमें बीजापुर में 10 हजार मजदूर निकटवर्ती राज्य से प्रवेश कर गए हैं. दंतेवाड़ा में 2 से 3 हजार मजदूर आ चुके हैं. सुकमा में 5 हजार की संख्या में मजदूर आ चुके है. वहां के अधिकारियों और पत्रकारों से मिली यह संख्या चिंताजनक है. सुकमा में शिविर लगा है, जिन मजदूर में पैदल आने को क्षमता थी, वो आ गए हैं, लेकिन जो पैदल नहीं आ सकते, उनके लिए खाने की व्यवस्था नहीं है.
डॉ. सिंह ने कहा कि बीजापुर में गांव में बाहर पेड़ के नीचे लोग ठहरे है, वहां क्वारेंटाइन का मतलब ही किसी को पता नहीं है. तेलंगाना से लोग पैदल चल कर अभी भी आ रहे हैं. पैदल यात्रा का क्रम जारी है. मुख्यमंत्री से आग्रह करता हूँ कि इतनी बडी त्रासदी में बस्तर के लिए सीधे लोगों के लिए इससे खराब नहीं हो सकता. कुछ जंगलों की ओर पलायन कर गए. दो लोग सबरी नदी में बहते-बहते बचे.