विषमता में भी समता से जीना सीखें, समता की श्रेष्ठ साधना है सामायिक : मुनि सुधाकर
रायपुर। जीवन को कलापूर्ण और सफल बनाने के लिए विषमता में भी समता से जीना अर्थात सामायिक में रमन करना सीखना जरूरी है. परिवार और समाज में नाना प्रकार के स्वभाव और संस्कार के व्यक्ति होते हैं. उस स्थिति में समता और सामंजस्य का अभ्यास बहुत जरूरी होता है. यह बात आचार्य श्री महाश्रमण के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर ने रायपुर के टैगोर नगर स्थित श्री लाल गंगा पटवा भवन में ‘पर्युषण महापर्व’ के तृतीय दिवस “सामयिक दिवस” पर मंगलवार को कही.
मुनिश्री ने आगे कहा कि सामायिक हमें समता में रहने का अभ्यास कराती है. जिसका मन स्वस्थ और सन्तुलित होता है, वह प्रतिकूल परिस्थिति को भी अनुकूल बना सकता है. भावावेश के प्रभाव से हमारा मन अशांत और अस्वस्थ होता है. इस स्थिति में निर्णय सही नहीं होता. जो परिवार और समाज के मुखिया होते है उनके लिए समता और शान्ति की साधना जरूरी है. तभी वे नेतृत्व की जिम्मेदारी को सफलता से पूरा कर सकते है.
उन्होंने आगे कहा कि भारत का दाम्पत्य जीवन सारे संसार में आदर्श माना जाता है, परंतु आज उसमें भी तनाव और टकराव दिखाई दे रहा है. संयम और सहनशीलता के द्वारा ही इसका समाधान हो सकता है.
मुनि नरेश कुमार ने सामायिक पर प्रेरणादायक गीतिका का संगान किया. आज सामायिक दिवस को अभातेयुप अपनी विश्व भर में फैली तेयुप शाखाओं के माध्यम से अभिनव सामायिक के रूप में मना रहा है, तदर्थ तेयुप, रायपुर द्वारा भी मुनिश्री की सन्निधि में अभिनव सामायिक का आयोजन किया गया, जिसमें सम्पूर्ण तेरापंथ समाज के साथ विशेष रूप से तेयुप, रायपुर सदस्य पकंज बैद, नवीन दुगड़, योगेश बाफना, संदीप बोथरा, निर्मल गांधी, गौरव दुगड़, वीरेंद्र डागा की सहभागिता रही. मंगलाचरण तेमम व तेयुप ने किया.