Ramlila 2024 : ‘राजा जनक अपनी जु़बान संभालो, ऐसे बेहूदा अल्फ़ाज़ अपने मुंह से न निकालो’ : यहां पर उर्दू में होती है रामलीला, राम सीता भी बोलते हैं ऐसे ऐसे डॉयलॉग
फरीदाबाद। ‘महाराजा जनक अपनी जु़बान को संभालो और ऐसे बेहूदा अल्फ़ाज़ अपने मुंह से न निकालो. घर पर बुलाकर किसी की बेइज्जती करना कहां की अक्लमंदी है, बल्कि आलादर्जे की खुद पसंदी है…’ सीता के स्वयंवर में राजा जनक को लक्ष्मण का ये जवाब है.
‘मौत का तालिब हूं मैं, मेरी लबों पे जान है, दो घड़ी का यह मुसाफिर आपका मेहमान है…’ ‘यह पीछे से फिकर करना मुझे बदला दिलाने की, कोई तजवीज कर पहले तू अपनी जां बचाने की…’ ‘ऐ मेरे बहादुर भाई ये तुम्हारा महज ख्याल है, वरना तुम्हें बुजदिल कहने की भला किसे मजाल है….’ (लक्ष्मण को समझाते हुए श्रीराम). यह उर्दू वाली रामलीलाकी एक झलक है.
राम भक्त हनुमान उर्दू के लफ्जों में लंकापति रावण को समझा रहे हैं। अयोध्या के राजा दशरथ रानी कैकेयी को उर्दू में वचन दे रहे हैं। यह सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा होगा। लेकिन फरीदाबाद की श्री श्रद्धा रामलीला कमिटी का मंचन उर्दू भाषा के संवादों में करती है। भारत-पाक के बंटवारे से पहले अवधी भाषा और उर्दू की शेरो-शायरी के साथ रामलीला का मंचन होता था। बंटवारे के समय बहुत से लोग रामलीला की कथा को अपने साथ भारत ले आए। उसके बाद से पीढ़ियों ने उसी कथा से रामलीला का मंचन आगे जारी रखा।
17 वर्षों से कर रहे उर्दू रामलीला संवाद
कमिटी के पदाधिकारियों ने बताया कि पहले पलवल में उर्दू संवाद में रामलीला करते थे। अब पिछले 17 वर्षों से फरीदाबाद में रामलीला का मंचन कर रहे हैं। यह रामलीला हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देती है। बंटवारे से पहले हमारे बुजुर्ग रोजमर्रा में उर्दू के अल्फाजों का इस्तेमाल करते थे। उर्दू भाषा के लफ्ज़ों में वजन होता है। उसके शेरो के अल्फाज़ आज की पीढ़ी को भी काफी पसंद आते हैं। कमिटी के निर्देशक अनिल चावला और कला निर्देशक अजय खरबंदा ने बताया कि भारत-पाक के बंटवारे से पहले हमारे बुजुर्ग उर्दू की शेरो-शायरी के साथ रामलीला का मंचन करते थे। जब से ही उर्दू भाषा की रामलीला का काफी क्रेज है। उसी क्रेज को बनाए रखने के लिए रामलीला का मंचन उर्दू भाषा में किया जाता है।
कड़ी मेहनत और अभ्यास निखरे उर्दू के अल्फ़ाज़
रामलीला संवाद के कलाकारों को शुरुआत में उर्दू भाषा के संवाद समझने में थोड़ी कठिनाई हुई। कुछ शब्दों ने उन्हें परेशान भी किया तो कुछ शब्द सही से बोले नहीं गए। कलाकारों ने उर्दू भाषा में रामलीला के संवादों पर बहुत मेहनत की। कलाकारों ने कई दिनों का अभ्यास किया। दशरथ का किरदार निभा रहे अजय खरबंदा ने बताया कि वह पिछले 15 वर्ष से दशरथ का अभिनय कर रहे हैं। उनका रानी कैकेयी को वचन देने का संवाद, जिसमें वह कहते हैं कि ‘जो प्रण किए हैं, निभाएंगे सौगंध है राम की’। फिज़ाएं देखती हैं, देखते हैं महल सारे, ज़मी आकाश पर्वत साक्षी हैं चांद और तारे। कहा जो ज़ुबा से आखिरी वही वचन होगा, कसम है राम की दशरथ का नहीं मिथ्या कथन होगा। दाग रघुकुल वंश के दामन पर न आएगा कभी, प्राण तो जाएंगे पर वचन नहीं जाएगा कभी। इसमें फिज़ाए, ज़मी, ज़ुबा, दामन आदि शब्द उर्दू भाषा के है। शुरू में इन शब्दों को बोलने में थोड़ी कठिनाई आई थी। समझने में भी दिक्कत आई, लेकिन लगातार प्रयास करने से अब आदत हो गई है।
एक हफ्ते में याद हुई उर्दू की चौपाई
हनुमान का किरदार निभाने वाले कैलाश चावला बताते हैं कि रामलीला के संवादों में ज्यादातर उर्दू के लफ्ज़ और शेर रोजमर्रा के हैं। कुछ शब्दों को बोलने में मुश्किल आई। पिछले 10 वर्षों से हनुमान का किरदार निभा रहा रहे हैं। कुछ शब्द व चौपाई को याद करने में एक हफ्ते का समय लग गया। जैसे हनुमान रावण को समझाते हुए कहते हैं कि ‘झुकेगा फ़र्शे ज़मी पे इक दिन, जो सर तकुब्बुर में घूमता है। खुमार आंखों से दूर होगा, तू जिसकी मस्ती में घूमता है। पड़ेंगे जाने हज़ी के लाले, गरूरे हस्ती का नाश होगा। मिलेगी खाके फ़नाह में मिट्टी, ज़माल तन पाश पाश होगा’। इसमें फ़र्शे, ज़मी, तकुब्बुर, खुमार, हज़ी, फ़नाह, ज़माल शब्द उर्दू भाषा के है।