जनजातीय समाज के गौरवशाली अतीत को अंग्रेजों ने तथ्य व सत्य से परे जाकर विलुप्त करने का कुचक्र रचा : पुरोहित
मुख्य अतिथि दीवान ने जनजातीय समाज की जागरुकता और विशिष्ट अतिथि अमरीका ने शिक्षित जनजातीय समाज पर बल दिया; बागबाहरा के खे.ल. महाविद्यालय में ‘जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत’ विषय पर हुई व्याख्यानमाला, विविध स्पर्धाओं से कार्यक्र को सँवारा गया
बागबाहरा। “आरण्यक, ग्राम्य और नगरीय जीवन शैलियों को एक सूत्र में पिरोने वाली भारतीय संस्कृति का सांस्कृतिक प्रतिनिधित्वकर्ता भारत का जनजातीय समाज ही है, जिसका अपना एक गौरवशाली इतिहास और सामाजिक संगठन है, जिसकी समृद्ध परंपराएँ और गहरी आध्यात्मिक चेतना हमें उनसे बहुत कुछ सीखने के लिए प्रेरित करती है। भारत के इतिहास में जनजातीय समाज के उल्लेखनीय योगदान को अंग्रेजों ने षड्यंत्रपूर्वक विलुप्त किया और जनजातीय समाज को पिछड़ा, गरीब और हाशिए पर पड़ा समाज बताया।” स्थानीय शासकीय खे.ल. महाविद्यालय में जनजाति गौरव दिवस के निमित्त शुक्रवार को ‘जनजाति समाज का गौरवशाली अतीत’ विषय पर आहूत व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता की आसंदी से वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुरोहित ने उक्त विचार व्यक्त किए।
पत्रकार श्री पुरोहित ने अपने संबोधन में जनजातीय समाज के प्रति भारत में व्याप्त मिथ्या धारणाओं को समाप्त करने की जरूरत पर बल देते हुए कि भारतीय संस्कृति और सीमाओं के अतिक्रमण के इरादे से आए मुगल आक्रांताओं और बाद में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ सतत संघर्ष जनजातीय समाज का गौरवशाली अध्याय है, जिसे अंग्रेजों ने अपने झूठ और तथ्य व सत्य से परे जाकर केवल इसलिए विलुप्त करने का कुचक्र रचा, क्योंकि अंग्रेजी सत्ता को सबसे अधिक चुनौती तब भारत के वन्य क्षेत्रों से ही मिली थी, जिससे ब्रितानी हुक्मरानों का अहं चोटिल हुआ था। पुंजा भील, रानी दुर्गावती, तिलका मांझी, बुद्धु भगत, भीमा नायक से लेकर भगवान बिरसा मुंडा, वीर नारायण सिंह, गुण्धाधुर आदि जनजातीय समाज के हुतात्मा बलिदानियों की चर्चा करते हुए श्री पुरोहित ने जनजातीय समाज के सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक विषयों के साथ ही उनकी समृद्ध ज्ञान-परंपरा पर भी प्रकाश डाला। श्री पुरोहित ने कहा कि जनजाति समाज पुरातन काल से प्रकृति पूजक रहा है। स्त्री-पुरुष में समानता का भाव जनजाति समाज की समृद्ध संस्कृति का हिस्सा है। आज नई पीढ़ी को उस परम्परा और ज्ञान से अवगत कराने की आवश्यकता है। जनजातीय समाज के प्रति व्याप्त विकृत धारणाओं को खत्म करना और जनजातीय समाज के समूचे गौरवशाली इतिहास का अध्ययन व अध्यापन आज समय की मांग है।
व्याखायानमाला के मुख्य अतिथि जनपद पंचायत के सभापति धरम दीवान ने कहा कि आज जनजातीय समाज को जागरूक होने की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि पुरातनकाल से जमीन, जंगल सभी जनजातियों का रहा है लेकिन जागरूकता के अभाव में अब यह कम होता जा रहा है। अतः सभी पढ़-लिखकर अपना अधिकार जानें। विशिष्ट अतिथि जुनवानी की सरपंच अमरीका ध्रुव ने कहा कि हम आदिवासी शिक्षित होंगे तो समाज शिक्षित होगा। जब समाज शिक्षित होगा तो जनजातीय समाज में जागरूकता आएगी और समाज का विकास हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य बी.एस. ठाकुर ने कहा कि यह दिन जनजाति समुदाय के ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान और उनके प्रति सम्मान बढ़ाने के लिए समर्पित है। महारानी दुर्गावती की 500वीं जयंती पर आहूत इस कार्यक्रम का शुभारंभ रानी दुर्गावती, बिरसा मुंडा, वीर गुण्डाधुर, वीर नारायण सिंह, दयावती कंवर के चित्र में धूपदीप, पुष्प अर्पण से हुआ। कार्यशाला के उद्देश्य पर व्याख्यानमाला के सह-संयोजक क्रीड़ाधिकारी पालन कुमार दीवान ने प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के दौरान जनजातीय समाज से संबंधित रंगोली, चित्रकला, निबंध लेखन, फैंसी ड्रेस, ऑनलाइन क्विज प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया जिसमें प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र एवं उपहार से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर अर्थशास्त्र विभाग के द्वारा जनजाति वेशभूषा, कला, संस्कृति, वाद्ययंत्रों की प्रदर्शनी भी रखी गई थी, जिसे काफी सराहना मिली। देशभर के जनजातीय समुदाय के क्रांतिकारियों की शौर्यगाथा के पोस्टर भी लगाए गए थे। कार्यशाला का संचालन व्याख्यानमाला के संयोजक सहा. प्राध्यापक गजानंद बुडेक ने किया एवं आभार प्रदर्शन प्रयोगशाला तकनीशियन नीलमणी साहू ने किया। कार्यशाला को सफल बनाने में प्राध्यापक शिवगोपाल रात्रे, धनुर्जय साहू, खिलावन पटेल, कोमल सोनवानी, कल्याणी नाग, नितिशा बजाज, सौरभ जैन प्रमुख ग्रंथपाल डॉ .लक्ष्मण सिंह साहू के साथ छात्र-छात्राओं एवं महाविद्यालयीन स्टाफ का विशेष योगदान रहा।