जब इंदिरा गांधी के कारण सबसे सीनियर जज नहीं बन पाए CJI, पढ़ें पूरा किस्सा
नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ रविवार (10 नवंबर 2024) को रिटायर हो गए. उनके स्थान पर आज (11 नवंबर) को जस्टिस संजीव खन्ना ने सीजेआई की शपथ ली, जिसके हकदार कभी उनके चाचा थे पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चलते उनको यह मौका नहीं मिला था. इससे पहले साल 1973 में भी इसी तरह से सबसे वरिष्ठ जज के बजाय दूसरे को सीजेआई बनाया गया था. आइए जान लेते हैं कि क्या है सबसे सीनियर जज को सीजेआई न बनाने की परंपरा तोड़ने का पूरा किस्सा.
साल 1973 में टूटी थी परंपरा
यह साल 1973 की बात है. सीजेआई सर्व मित्र सीकरी के रिटायरमेंट के बाद जस्टिस अजीत नाथ रे (एएन रे) को सीजेआई बनाया गया था, जिसको लेकर काफी विवाद हुआ था, क्योंकि वह वरिष्ठता सूची में चौथे स्थान पर थे. जस्टिस रे से पहले जेएम शेलट, जस्टिस केएल हेगड़े और जस्टिस एएन ग्रोवर सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ जज थे. इन तीनों में से किसी को भी सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस नहीं बनाया था. इसका कारण था कि इन जजों ने केशवानंद भारती बनाम सरकार मामले में केंद्र सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया था. केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि संविधान के मूलभूत ढांचे में बदलाव के लिए संसद इसमें संशोधन नहीं कर सकती है.
बताया जाता है कि जब जस्टिस एएन रे को सीजेआई नियुक्त किया जाना था, तो उन्हें इस पर फैसला करने के लिए केवल दो घंटे का वक्त दिया गया था. उन्होंने सरकार की ओर से सीजेआई के रूप में नियुक्ति को स्वीकार कर लिया था. उन्होंने कहा था कि अगर वह पद नहीं स्वीकार करते तो कोई और इस पद पर आसीन होता. इस बात का निवर्तमान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब सुप्रीम व्हिस्पर्स में भी जिक्र किया है. जस्टिस एएन रे तीन साल 276 दिनों तक पद पर रहे.
साल 1977 में फिर से परंपरा दरकिनार
जस्टिस एएन रे के रिटायरमेंट के बाद जस्टिस एचआर खन्ना सबसे वरिष्ठ थे. यह जस्टिस खन्ना ही चीफ जस्टिस की शपथ लेने वाले जस्टिस संजीव खन्ना के चाचा थे. साल 1977 में जब जस्टिस एचआर खन्ना के सीजेआई बनने की बारी आई तो एक बार फिर से सरकार ने परंपरा का पालन नहीं किया क्योंकि जस्टिस खन्ना ने भी इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली सरकार को असहज करने वाला एक फैसला दिया था.
मध्य प्रदेश में जबलपुर के एक एडीएम के मामले में जस्टिस खन्ना ने कहा था कि वह सरकार की इस बात से कतई सहमत नहीं कि किसी भी व्यक्ति की हिरासत पर केवल इसलिए सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इमरजेंसी लागू है. इस फैसले के बाद जस्टिस एचआर खन्ना के बजाय जस्टिस एमएच बेग को सीजेआई बनाया गया था. अब उन्हीं जस्टिस एचआर खन्ना के भतीजे जस्टिस संजीव खन्ना सीजेआई की शपथ ले रहे हैं.
साल 1964 में सबसे पहले टूटी थी परंपरा
हालांकि, 1973 और 1977 से पहले भी एक बार वरिष्ठता को दरकिनार कर चीफ जस्टिस की नियुक्ति हुई थी लेकिन उस मामले में कारण सरकार के खिलाफ फैसला नहीं था। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में साल 1964 में भी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में जस्टिस इमाम की वरिष्ठता के बावजूद जस्टिस गजेंद्र गडकर को सीजेआई बनाया गया था हालांकि तब जस्टिस इमाम गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे, जिसका असर उनकी मानसिक क्षमता पर भी पड़ा था. इसलिए उनके स्थान पर दूसरे को सीजेआई बनाया गया था.
डीयू के लॉ सेंटर से की है पढ़ाई
14 मई 1960 को जन्मे जस्टिस संजीव खन्ना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ सेंटर से कानून की पढ़ाई पूरी की है. इसके बाद 1983 में उन्होंने दिल्ली बार काउंसिल में वकील के रूप में पंजीकरण कराया. तीस हजारी कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की. फिर दिल्ली हाईकोर्ट में जज नियुक्त किए गए. हाईकोर्ट में जज के रूप में 14 साल तक जज रहने के बाद उनको साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में पदोन्नत किया गया.
हालांकि, जस्टिस खन्ना की सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नति के वक्त विवाद भी हुआ था. कोलेजियम ने वरिष्ठता क्रम में 33वें स्थान पर रहे जस्टिस खन्ना की पदोन्नति का फैसला किया था. इस दौरान 32 जजों की अनदेखी करने का आरोप लगा था.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना की शुरुआत उसी कोर्ट रूम से हुई थी, जहां से उनके चाचा जस्टिस एचआर खन्ना रिटायर हुए थे. जस्टिस संजीव खन्ना के पिता न्यायमूर्ति देवराज खन्ना भी दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे.
आखिर क्या है सीजेआई की नियुक्ति की प्रक्रिया
सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि सीजेआई की नियुक्ति के लिए कोई प्रक्रिया तय नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 124(1) में इतना कहा गया है कि भारत की एक सर्वोच्च अदालत होगी, जिसके मुख्य न्यायाधीश होंगे. उनकी नियुक्ति कैसे होगी, इसकी कोई विशेष प्रक्रिया नहीं बताई गई है. संविधान के अनुच्छेद 126 में सुप्रीम कोर्ट के कार्यवाहक सीजेआई की नियुक्ति को लेकर जरूरी कुछ दिशानिर्देश हैं. चूंकि कोई तय प्रक्रिया नहीं है, इसलिए सीजेआई की नियुक्ति पारंपरिक तरीके से होती है.
परंपरा के अनुसार सीजेआई के रिटायरमेंट के बाद उनके स्थान पर सबसे वरिष्ठ जज को कुर्सी दी जाती है. सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की रिटायरमेंट की उम्र 65 साल है पर वरिष्ठता उम्र के बजाय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कितने साल काम किया है, इस पर तय होती है. ऐसी स्थिति आ जाए कि दो जजों के पास समान अनुभव हो, तो फिर उनके हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में अनुभव को देखा जाता है. जिसके पास अधिक समय का अनुभव होता है, उनको सीनियर माना जाता है.