September 8, 2024

बिहार में जन्मे MP में चमके; सिंधिया के धुर विरोधी कहे जाने वाले प्रभात झा ने कैसे चढ़ी सियासी सीढ़ियां

भोपाल।किसी शायर ने लिखा है कि ‘रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई, तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई’ आज का दिन MP बीजेपी सहित पूरे संगठन के लिए काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. आज एमपी बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शुमार और पूर्व राज्यसभा सांसद प्रभात झा का निधन हो गया. उनके निधन के बाद पूरे प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई है. प्रभात झा अपने तेवर के लिए जाने जाते थे. एक समय इनकी गिनती सिंधिया के धुर विरोधियों में की जाती थी. इनकी बोलने की शैली वाकपटुता लोगों को खूब पसंद आती थी. प्रभात झा का जन्म बिहार राज्य में हुआ था लेकिन इन्हें पहचान एमपी की सियासत से मिली, जानिए कैसे इन्होंने तय किया पत्रकारिता से राजनीति का सफर.

दौड़ी शोक की लहर
प्रभात झा के निधन के बाद एमपी बीजेपी सहित पूरे देश के बीजेपी कार्यकर्ताओं में शोक की लहर दौड़ गई है. प्रभात झा पिछले कुछ महीने से बीमार चल रहे थे. बीते जून में न्यूरोलॅाजिकल परेशानियों के चलते प्रभात झा को एमपी की राजधानी भोपाल में भर्ती कराया गया था.इस दौरान उनका हाल- चाल जानने के लिए बीजेपी के सीनियर नेताओं का जमावड़ा लगा था. यहां तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें एयर एंबुलेंस के जरिए दिल्ली भेजा गया जहां उनका इलाज चल रहा था. इलाज के दौरान आज सीनियर नेता का निधन हो गया. इनके निधन पर सीएम मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं ने दुख जताया है.

संगठन में थी मजबूत पकड़
प्रभात झा मध्य प्रदेश में बीजेपी के उन नेताओं में शामिल थे, जिनकी संगठन में मजबूत पकड़ मानी जाती थी. वह कार्यकर्ताओं तक सीधी पहुंच रखते थे. ऐसे में जब वह बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने तो उन्होंने संगठन स्तर पर कई अहम बदलाव किए थे. प्रभात झा ने संगठन में छोटी-छोटी कमेटियां बनाई और बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं को अहम जिम्मेदारियां सौंपी थी. जिसका फायदा भविष्य में बीजेपी को हुआ. इसके अलावा उन्होंने प्रदेशभर में संगठन को मजबूत करने के लिए कई अभियान भी चलाए थे. यही वजह है कि उनके कार्यकाल में बीजेपी का संगठन ग्राउंड पर और मजबूत हुआ था. बाद में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी बीजेपी ने जिम्मेदारी सौंपी थी. बीजेपी उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था.

जिंदगी से जुड़े अनसुने किस्से

प्रभात झा का जन्म 4 जून 1957 को बिहार राज्य के दरभंगा के हरिहरपुर गांव में हुआ था. इने पिता का नाम पनेश्वर झा और माता का नाम अमरावती झा था.
झा अपने परिवार के साथ एमपी के ग्वालियर में आ गए और यहीं से इनकी प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा हुई, इन्होंने ग्वालियर के पीजीवी कॅालेज से बीएससी, माधव कॅालेज से राजनीति शास्त्र में एमए और एलएलबी की पढ़ाई की.
प्रभात झा की शादी रंजना झा से हुई थी. इनके दो पुत्र हैं. विवाह के बाद बाद प्रभात झा न पत्रकारिता की तरफ रुख किया. पत्रकारिता के दौरान इन्होंने कई पत्र- पत्रिकाओं के लिए लेख भी लिखा.
प्रभात झा की लिखने में काफी दिलचस्पी थी इनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित भी हो चुकी हैं. इनमें ‘शिल्पी, जन गण मन, अजातशत्रु, संकल्प, अंत्योदय, समर्थ भारत, 21वीं सदी, भारत की सदी जैसी पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं.
पत्रकारिता के बाद प्रभात ने राजनीति का श्री गणेश किया और बीजेपी का दामन थामा, इस दौरान भी इन्होंने लेखन कला जारी रखी, ये साल 2008 में पूरी तरह राजनेता बनें. बता दें कि भाजपा के मुख पत्र कमल संदेश के संपादन का भी जिम्मा इन्होंने निभाया है.
साल 2008 में ये बीजेपी के टिकट पर राज्यसभा पहुंचे. साथ ही साथ रुरल डेवलपमेंट कमेटी के सदस्य बन गए. जनवरी 2010 में वे पॅापुलेशन और पब्लिक हेल्थ के संसदीय फोरम सदस्य बनाए गए.
अक्टूबर 2009 में विजय माल्या ने उपहार में शराब भेजी तो प्रभात झा ने वापस भेज दी और चिट्ठी लिख कर कहा मेरा आपसे कोई परिचय नहीं है मैं शराब का नहीं किताब का शौकीन हूं… वो भेजता तो खुशी होती.
अगस्त 2012 में झा रेलवे कमेटी के सदस्य बने और अप्रैल 2013 में शिल्पकारो और कारीगरों के संसदीय फोरम के सदस्य बने. इसके अलावा पॅापुलेशन और पब्लिक हेल्थ के संसदीय फोरम सदस्य रह चुके थे.
प्रभात झा की गिनती सिंधिया के धुरविरोधियों में की जाती थी. खुलेमंच से प्रभात झा ज्योतिरादित्य सिंधिया का विरोध करते थे. दरअसल प्रभात झा और सिंधिया का राजनीतिक क्षेत्र ग्वालियर ही रहा है.
प्रभात झा एमपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके थे. इन्होंने एक बार कहा था कि ये 62 साल की उम्र में राजनीति से सन्यास ले लेंगे औऱ एक एकड़ जमीन खरीदेंगे वहां 5वीं तक स्कूल चलाएंगे, साथ ही साथ राजनीति से सन्यास के बाद 5 गाय और 2 भैंस भी पालेंगे.

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