CG : अचानक गायब हुए चुनावी बैनर-पोस्टर, दो दर्जन से ज्यादा गांवों में चुनाव बहिष्कार के लिए बैठकों का दौर जारी
गरियाबंद। छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के दूसरे दौर का प्रचार आज शाम थम जाएगा। पीएम नरेंद्र मोदी सूबे में मंगलवार को खुद कैम्प किये। महासमुंद लोकसभा क्षेत्र के धमतरी जिले में एक आमसभा को भी सम्बोधित किये। बावजूद इसके उसी लोकसभा क्षेत्र में दो दर्जन से ज्यादा गांवों में ग्रामीण चुनाव बहिष्कार की तैयारी में हैं। आलम ऐसा भी कि कोयबा में नेशनल हाइवे से लगे एक भाजपा नेता के घर में भी पार्टी का झंडा नहीं लगा दिखा जबकि इन्हें 20 बूथों में प्रचार सामग्री वितरण करने का जिम्मा दिया गया था. अंदरुनी इलाके में कई कार्यकर्ता ऐसे भी दिखे जिनके घरों में पार्टी झंडा से भरा बोरियो का ढेर जस का तस पड़ा मिला.
उदंती अभ्यारण्य के भीतर बसे 30 से भी ज्यादा गांव में अचानक गायब हो गए चुनावी बैनर पोस्टर, चुनाव बहिष्कार के लिए बैठकों का दौर भी शुरू हो गया. ग्रामीणों का आरोप है कि 20 साल से मूलभूत सुविधाओं की मांग के लिए जूझ रहे इस बार मतदान नहीं करेंगे. वहीं इसपर प्रशासन का दावा है कि चुनाव बहिष्कार नहीं होगा, मांगे पुरी की गई है. उदंती सीता नदी अभ्यारण के भीतर बसे कई गांव में इन दिनों चुनाव बहिष्कार को लेकर बैठकों का दौर शुरू है. प्रशासन के लाख समझाइए और जागरूकता अभियान के बावजूद कई गांव आज भी चुनाव बहिष्कार के लिए अड़ा हुआ है.
ग्रामीण सूत्रों से सूचना मिली थी की बहिष्कार का निर्णय लेने मंगलवार को साहेबिन कछार में ग्रामीण बैठक करेंगे. समय 10 बजे निर्धारित था, हमारी टीम गांव के चबूतरे के पास 11 बजे पहुंची तब तक 15 से 20 लोग ही आए थे. यहां पंचायत साहेबिन कछार के अलावा आश्रित ग्राम नागेश, करलाझर व कोदोमाली के लोगो को बुलाया गया था.12 बजने से पहले 100 की संख्या में लोग इक्ट्ठा हो गए. ग्राम के पूर्व सरपंच रूपसिंह मरकाम, अर्जुन नायक इस बैठक को लिड कर रहे थे. ग्राम के प्रमुख करनसिंह नाग, तिलक मरकाम, रोहन मरकाम, चंद्रभान जैसे कई भूंजिया नेता मौजूद थे. लगभग एक बजे तक चले इस बैठक में उक्त दोनों मुखिया ने समस्या को गिनाया फिर समाधान के लिए पिछले 20 साल किए संघर्ष को बताया गया. कहा गया की कोई भी राजनीतिक दल उनकी समस्या को नही सुलझा पाया, सभी केवल इस्तेमाल करते हैं. इन्हें इस बार वोट नही देने का संकल्प लेकर 2014 में किए गए चुनाव बहिष्कार की तरह इस बार भी बहिष्कार को सफल बनाने का निर्णय लिया गया. जिसमें सभी ने सहमति दे दिया. अर्जुन नायक ने बताया की 20 पंचायत के द्वारा गठित किसान संघर्ष मोर्चा ने पहले 4 अप्रैल को प्रशासन के पास ज्ञापन सौंपा मांगे पुरी करने कहा गया था, फिर 15 अप्रैल को जिला प्रशासन को एक और ज्ञापन सौंपा गया, मांगे नहीं मानी गई. इसलिए अब बहिष्कार के फैसले को अंतिम रूप देने आज आम सहमति बनाई गई. अर्जुन ने दावा किया की उनके इलाके के 5 पंचायत ने सप्ताह भर पहले बम्हनी झोला में बैठक किया, कूल 18 गांव के प्रतिनिधि शामिल थे. इन सभी पंचायत में बहिष्कार का असर दिखेगा.
ज्यादातर बड़ी मांगे एनओसी के वजह से लंबित – एसडीएम
ग्रामीणों की प्रमुख मांग में सड़क और पूल शामिल है, जिसके अभाव में बरसात के दिनों में गर्भवती की जाने जाती है. तेंदूपत्ता तुड़ाई पर लगी रोक को हटाने, लंबित वन अधिकार पट्टा जारी करने, विद्युत विहीन ग्राम को विद्युतीकरण, स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार दिलाने, शिक्षक की कमी दूर करने, इंदागांव के लिए बजट में शामिल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र निर्माण, उप तहसील की स्थापना, बैंक खोलने जैसे मांग के अलावा कई अन्य मांगे शामिल थी. मैनपुर एसडीएम तुलसीदास मरकाम ने कहा कि अभ्यारण्य इलाका होने के कारण ज्यादातर मांग के लिए एनओसी का मामला दिल्ली में लटका है. आचार सहिता में जो मांगे मानी जा सकती थी उन्हें पुरा भी किया गया है. जो आचार संहिता हटने के बाद हो सकते हैं उन्हें बाद किया जाएगा. ग्रामीणों को विस्तृत रूप से उनकी मांगों को समझा दिया गया है, कोई भी गांव में चुनाव बहिष्कार नहीं होगा.
अचानक से गायब हो गए बैनर, चेहरे पर खौफ भी
अभ्यारण्य के भीतर मौजूद इंदागांव, कोयबा, बम्हनी झोला, करलाझर, नागेश, साहेबिन कछार, घुमरापदर, पीपलखुटा, जैसे 30 से ज्यादा अंदरूनी गांव का मुआयना किया गया. जिसमें पता चला माह भर पहले तक गांव में भाजपा के बैनर पोस्टर लगे हुए थे. लेकिन 15 से 20 दिन पहले धीरे-धीरे सभी झंडे बैनर उतार दिए गए. आलम ऐसा भी कि कोयबा में नेशनल हाइवे से लगे एक भाजपा नेता के घर में भी पार्टी का झंडा नहीं लगा दिखा जबकि इन्हें 20 बूथों में प्रचार सामग्री वितरण करने का जिम्मा दिया गया था. अंदरुनी इलाके में कई कार्यकर्ता ऐसे भी दिखे जिनके घरों में पार्टी झंडा से भरा बोरियो का ढेर जस का तस पड़ा मिला. वजह जानने किए गए सवाल के बिच जवाब के नाम पर ज्यादातर ने कहा की आपको इससे क्या लेना देना. कुछ ने इसे अपना आंतरिक मामला बता कर पल्ला झाड़ लिया. तो कुछ ने बताया की माहौल ठीक नहीं, इस विषय पर बात करने का इसे उचित समय नहीं होना बताया. सूत्र बताते है कि पिछले एक माह में इन इलाकों में माओवादी गतिविधि बढ़ गई है. कहा जाता है लंबित मांगों को लेकर बहिष्कार कर रहे गांव के अलावा कुछ गांव ऐसे भी है जहां मावोवादियों ने वोट नहीं डालने की अपील कर दिया है. ग्रामीणों में थमा प्रचार प्रसार और उतरे झंडे बैनर के पीछे बढ़ी हुई आवाजाही को माना जा रहा है.
एसपी गरियाबंद के मुताबिक़ पिछले चुनाव में मिली अनुभव को देखते हुए इस बार सर्चिंग बढ़ा दी गई है. संवेदनशील इलाकों का चिन्हांकन किया गया है. गांव-गांव में हमारे फोर्स पहुंचकर मतदान के पहले भयमुक्त और विश्वास का माहौल बना लेंगे. मतदान तिथि तक हम लोगों के मन से डर हटाकर विश्वास और भयमुक्त वातावरण तैयार करने में सफल रहेंगे.