November 7, 2024

गौटिया के गोठ : क्या नए चेहरों के सहारे पार होगी छत्तीसगढ़ बीजेपी की नैया? साइड इफेक्ट की भी चिंता!

अजीत कुमार शर्मा

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा हर तरह के दांव खेलने के लिए तैयार दिख रही हैं। पार्टी यह मान कर चल रही, कि 2023 में नए चेहरों के सहारे ही बीजेपी की नैया पार हो सकती है। सूबे में पार्टी की नैया को पार लगाने की कवायद आज से नहीं बल्कि वर्ष 2018 में कांग्रेस से मिली शिकस्त के बाद ही शुरू हो चुकी है। पार्टी हाईकमान अपने स्तर पर सर्वे भी कर चुकी है। इसलिए पार्टी हाईकमान ने राजस्थान के सीनियर और 70 साल के अनुभवी नेता ओम माथुर को बीजेपी छत्तीसगढ़ प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी है। इस काम की जिम्मेदारी मिलते ही वो प्रदेश की जमीनी हकीकत और पार्टी के हार के कारणों की समीक्षा करने में लगे हैं। इसके लिए प्रदेश के पांचों राजनीति गलियारे (पांचों संभाग) में सक्रिय हैं। इन राजनीतिक गलियारों में वो लगातार दौरा कर रहे हैं। फीड बैक के आधार पर यह तय माना जा रहा हैं कि पार्टी आधे से ज्यादा पुराने चेहरों को ड्रॉप करने का मन बना चुकी हैं। इनमे से ज्यादातर के लिए नए चेहरे तलाशे जा रहे हैं भले ही वो आयातित ही क्यों न हों?

छत्तीसगढ़ के सभी 90 विधानसभा क्षेत्र के गलियारों में जनता की नब्ज टटोलने में सूबे के प्रभारी लगे हैं। विशेषकर बस्तर की नब्ज को पकड़कर उसका इलाज करने की कवायद में जुटे हैं। क्योंकि प्रदेश में सत्ता की चाबी यही से खुलती है। यही से चौथी बार सत्ता का स्वाद चखा जा सकता है। यही वजह है कि वो लगातार बस्तर प्रवास पर रह रहे हैं। हाल ही में बस्तर संभाग के जगलपुर, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा कांकेर, कोंडागांव और नारायणपुर में दौरा कर विधानसभा कोर कमेटी की बैठक ले चुके हैं। वे पार्टी के सीनियर और जूनियर नेताओं से बातचीत करने के अलावा नए चेहरों से मिलने से भी कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र समेत 8 राज्यों के प्रभारी रह चुके 70 वर्षीय ओम माथुर सबके अनुभवों को समेटने में लगे हैं।

सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में इस बार 50-50 का आंकड़ा रह सकता है। यानी पार्टी 50 फीसदी सीटों पर नए चेहरों और 50 फीसदी सीटों पर पुराने चेहरों को मौका दे सकती है। इनमें नए चेहरों पर बड़ी संख्या में दांव लगाया जा सकता है। पार्टी में कई नेता 60, 70 और 80 साल के हैं। कुछ को अनौपचारिक रूप से रिटायर भी किया जा सकता है। वहीं कई पुराने चेहरों को मैनेज करने के लिए लोकसभा में भी भेजा जा सकता है।

साल 2018 में मिली हार में पुराने चेहरों के बीच गुटबाजी, खिंचतान और नाराजगी सामने आई थी। वहीं एंटी इनकंबेंसी की बयार ने भी खेल बिगाड़ा था। इस बार पार्टी इन्हीं खाइयों को पाटने की प्रक्रिया में लगी है। इसलिए नए चेहरों पर दांव लगाया जा सकता है। दूसरी ओर पार्टी हाईकमान ने प्रदेशाध्यक्ष अरुण साव को खुलकर काम करने की इजाजत दे रखी है। उन्हें प्रदेश में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से भी आगे रहकर कार्य करने के लिए और बोलने के लिए स्वतंत्र रखा गया है।

गुरुवार को बीजेपी कार्यालय एकात्म परिसर रायपुर में 309 से ज्यादा लोगों का प्रवेश भी इसी का हिस्सा हो सकता है। पार्टी प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, पूर्व सीएम रमन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव की मौजूदगी में भारतीय जनता पार्टी की रीति-नीति से प्रभावित होकर 309 से ज्यादा लोगों ने बीजेपी में प्रवेश किया। इसमें छत्तीसगढ़ की जानी-मानी हस्तियां शामिल रहीं। इनमें दो बड़े नाम पद्मश्री अनुज शर्मा और राधे श्याम बारले शामिल हैं। वहीं पूर्व आईएएस राजपाल सिंह त्यागी और राज्य अलंकरण से सम्मानित प्रदेश के 13 कलाकार, समाज प्रमुख, जन प्रतिनिधि, किसान, छात्र, अधिवक्ता, फिल्म प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, प्रोडक्शन मैनेजर,व्यापार जगत की मशहूर हस्तियां, अंतरराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त छत्तीसगढ़ी लोक कलाकार शामिल हैं।

चर्चा है कि बलौदाबाजार-भाटापारा जिला के रहने वाले पद्मश्री अनुज शर्मा को भाटापारा से विधानसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है। क्योंकि उनके 2008 से ही बीजेपी में आने की कवायद चल रही थी। भाटापारा-बलौदाबाजार को लेकर उन्हें आश्वासन मिल चुका है। फिलहाल, भाटापारा से शिवरतन शर्मा विधायक हैं। वहीं कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी में आए पूर्व आईएएस राजपाल सिंह त्यागी को भी टिकट मिल सकता है। युवा नेताओं की लिस्ट में पहले से ही पूर्व आईएएस ओपी चौधरी, भिलाई के दया सिंह समेत कई नेता शामिल हैं। सियासी गलियारे में इस बात की भी संभावना है कि भविष्य में कई युवा नेता, आईएएस, आईपीएस वीआरएस लेकर बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। यहां तक कि कांग्रेस के भी कई युवा नेता बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। बहरहाल, छत्तीसगढ़ बीजेपी इन नए चेहरों के सहारे अपनी नैया पार लगा पाएगी या नहीं, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

साइड इफेक्ट
यहाँ यह बताना लाज़मी होगा कि इसका कई विधानसभा क्षेत्रों में विपरीत प्रभाव भी पड़ता दिख रहा हैं। मसलन जो पुराने और जीवट कार्यकर्ता हैं उनमें नए प्रत्याशी के चयन को लेकर कोई मापदंड नहीं अपनाये जाने की बात सुनकर कहीं न कहीं नाराजगी झलकने लगी हैं। मसलन नव प्रवेशित लोगों को लेकर उनके इलाके में विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। वहीँ कुछ वर्तमान भाजपा विधायकों ने तो खुलकर अपना विरोध भी दर्ज कराया हैं। बहरहाल मामला ज्यादा तूल न पकडे इसे लेकर भाजपा सतर्कता भी बरत रही हैं।

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