गुप्तेश्वर पांडेयः 11 साल पहले बीजेपी ने दिया था गच्चा, अब जेडीयू से झटका
पटना। बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने चुनाव से ठीक पहले वीआरएस लेकर सियासी किस्मत आजमाने के लिए जेडीयू का दामन थामा. जेडीयू ने अपनी सभी 115 सीटों पर उम्मीदवारों की जो लिस्ट जारी की है, उसमें किसी भी सीट पर गुप्तेश्वर पांडेय का नाम नहीं है. यह पहली बार उनके साथ नहीं हुआ बल्कि 11 साल पहले भी गुप्तेश्वर पांडेय वीआरएस लेकर बीजेपी से चुनावी मैदान में उतरना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. बीजेपी के बाद जेडीयू ने उन्हें गच्चा दे दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि अब गुप्तेश्वर पांडेय के पास क्या विकल्प बचता है.
बता दें कि गुप्तेश्वर पांडेय बिहार की बक्सर सीट से चुनाव लड़ने की जुगत में थे, पर एनडीए की सीट शेयरिंग में यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई. जेडीयू की लिस्ट में नाम न होने के बाद माना जा रहा था कि बीजेपी उन्हें बक्सर सीट से चुनावी मैदान में उतार सकती है, लेकिन बीजेपी ने भी इस सीट से परशुराम चतुर्वेदी को उतारकर उनके अरमानों पर पानी फेर दिया है. टिकट न मिलने के बाद गुप्तेश्वर पांडेय ने साफ कर दिया है कि वह इस बार बिहार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
‘नहीं लड़ रहा हूं चुनाव’
गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा, ‘अपने अनेक शुभचिंतकों के फोन से परेशान हूं, मैं उनकी चिंता और परेशानी भी समझता हूं. मेरे सेवामुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूंगा लेकिन मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा. हताश निराश होने की कोई बात नहीं है. धीरज रखें. मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है. मैं जीवन भर जनता की सेवा में रहूंगा. कृपया धीरज रखें और मुझे फोन नहीं करे. बिहार की जनता को मेरा जीवन समर्पित है.’
बीजेपी ने 2009 में निराश किया था
गुप्तेश्वर पांडेय ने 11 साल पहले भी राजनीतिक मैदान में किस्मत आजमाने के लिए 2009 में वीआरएस लिया था. उस समय भी उनके लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चाएं तेज थीं. कहा जाता है कि गुप्तेश्वर पांडे बिहार की बक्सर लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे. गुप्तेश्वर पांडे को उम्मीद थी कि बक्सर से बीजेपी के तत्कालीन सांसद लालमुनि चौबे को पार्टी दोबारा से प्रत्याशी नहीं बनाएगी. ऐसे में वह पुलिस की नौकरी से इस्तीफा देकर सियासी गोटियां सेट करने में लगे थे.
बीजेपी नेताओं के साथ पांडे ने अपने समीकरण भी बना लिए थे और टिकट मिलने का पूरा भरोसा भी हो गया था. गुप्तेश्वर पांडे के नाम की घोषणा होती उससे पहले ही बीजेपी नेता लालमुनि चौबे ने बागी रुख अख्तियार कर लिया. इससे बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए लालमुनि चौबे को ही मैदान में उतारने का फैसला किया. इस्तीफा दे चुके पांडे के सियासी अरमानों पर पानी फिरने के बाद गुप्तेश्वर पांडे दोबारा से पुलिस सर्विस में वापसी कर गए थे.
टिकट कटने के बाद अब क्या विकल्प हैं
दिलचस्प बात यह है दोबारा से उसी बक्सर सीट चुनावी मैदान में उतरने के लिए उन्होंने डीजीपी का पद छोड़ दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में जेडीयू की सदस्यता भी ली. ऐसे में उनके बक्सर सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें काफी दिनों से थी. हालांकि, इस बार गुप्तेश्वर पांडेय के अरमानों पर पानी इसलिए फिर गया, क्योंकि बक्सर सीट बीजेपी के खाते में चली गई. बीजेपी ने बक्सर सीट से परशुराम चतुर्वेदी को अपना प्रत्याशी बना दिया है. अब उन्होंने कह दिया है कि इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे.
बक्सर सीट बीजेपी के खाते में चले जाना भले ही गुप्तेश्वर पांडेय के लिए राजनीतिक तौर पर झटका माना जा रहा हो, लेकिन अभी भी उनके सामने राजनीतिक विकल्प बंद नहीं हुए हैं. बिहार में राज्यपाल कोटे के 12 विधान परिषद सदस्यों का मनोनयन होना है. चुनाव के बाद जेडीयू की सत्ता में वापसी होती है तो नीतीश कुमार के हाथ में होगा कि वो किसे उच्च सदन भेजते हैं. ऐसे में गुप्तेश्वर पांडेय अब एमएलसी बनाने का दांव भी चल सकते हैं.