December 24, 2024

लोकसभा चुनाव 2024 : मेरठ के जातीय समीकरण के जंजाल में फंसे ‘राम’

RAAM

मेरठ के जातीय समीकरण के कई रंग हैं. यहां की सियासत अलग ही कहानी बयां कर रही है. मेरठ में जाति का समीकरण बीजेपी के पक्ष में नहीं दिख रहा है लेकिन हिंदुत्ववादी राजनीति के दम पर भाजपा ये सीट निकालना चाहती है.

मेरठ लोकसभा सीट से बीजेपी ने धारावाहिक रामायण में राम का किरदार निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल पर दांव लगाया है. वहीं ‘राम’ के खिलाफ समाजवादी पार्टी ने जनरल सीट पर दलित वर्ग से आने वाली सुनीता वर्मा को टिकट दिया है और बहुजन समाज पार्टी ने अगड़े वर्ग के देवव्रत त्यागी को चुनावी मैदान में उतारा है.

लोकसभा चुनाव के मैदान में तीनों ही खिलाड़ी नए हैं. लेकिन ‘राम’ मेरठ के जातीय समीकरण के जंजाल में फंसते नजर आ रहे हैं. सपा-बसपा का जातीय समीकरण बीजेपी की राह में चुनौतियां बन रहा है. इस स्पेशल स्टोरी में आप जानेंगे कैसे सपा-बसपा का दलित-मुस्लिम गठजोड़ बीजेपी की मुश्किल बढ़ा रहा है.

पहले जानिए बीजेपी के ‘राम’ का मेरठ से क्या है कनेक्शन
अरुण गोविल का जन्म मेरठ में ही हुआ था. कहा जाता है कि वह अपने जीवन के पहले 17 साल मेरठ में रहे. 1966 में गवर्नमेंट इंटर कॉलेज मेरठ से 10वीं कक्षा और 1968 में गवर्नमेंट इंटरमीडिएट कॉलेज सहारनपुर से 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की. 1972 में उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से बीएससी की डिग्री ली. अरुण गोविल ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर घोषणा की थी कि उन्होंने राजनीति में कदम रखा है और अपने गृहनगर मेरठ से चुनाव लड़ेंगे.

गोविल एकदम साफसुथरी छवि वाले बीजेपी उम्मीदवार हैं. उनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है और न ही उनके पास कोई हथियार है. वह वर्सोवा विधानसभा क्षेत्र से मतदाता हैं. गोविल के पास 3.75 लाख रुपये नकद, जबकि उनकी पत्नी के पास 4.07 लाख रुपये से कुछ अधिक नकद है. उनके बैंक खाते में 1.03 करोड़ रुपये से ज्यादा हैं, जबकि श्रीलेखा के पास करीब 80.43 लाख रुपये हैं. गोविल की कुल संपत्ति का करीब 5.67 करोड़ और उनकी पत्नी की 2.80 करोड़ रुपये है.

अरुण गोविल रामानंद सागर की ‘रामायण’ में श्रीराम राम का रोल प्ले निभाकर फेमस हुए थे. बताया जा रहा है कि अप्रैल के आखिरी में रामायण सीरियल में अभिनय करने वाली टीम अरुण गोविल के पक्ष में वोट मांगने के लिए मेरठ आएगी. इसके लिए बीजेपी ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. रामायण में सीता का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री दीपिका चिखलियांचिखलियां और लक्ष्मण बने सुनील लहरी भी मेरठ आकर प्रचार करेंगे. मतलब साफ है कि बीजेपी रामायण के किरदारों को चुनावी मैदान पर उतारकर अयोध्या के राम की याद दिलाने की कोशिश कर रही है.

सपा प्रत्याशी से जातीय समीकरण के जंजाल में फंसे ‘राम’
मेरठ ऐसी सीट है जहां अखिलेश यादव ने दो बार अपना उम्मीदवार बदला. पहले उन्होंने भानु प्रताप को टिकट दिया और फिर उनका नाम काटकर अतुल प्रधान को टिकट दे दिया. अतुल प्रधान ने अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया था. लेकिन उनका भी टिकट काट दिया और 4 अप्रैल को नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन सुनीता वर्मा को मैदान पर उतार दिया.

ओबीसी समुदाय से आने वालीं सुनीता वर्मा की छवि भी समाज में साफ-सुथरी है. अखिलेश ने मेरठ पूर्व मेयर सुनीता वर्मा को टिकट देकर बाजी पलट दी. अरुण गोविल के सामने सुनीता एक बड़ी चुनौती हैं.

सुनीता वर्मा का राजनीतिक सफर डेढ़ दशक पहले जिला पंचायत सदस्य के तौर पर शुरू हुआ था. 2017 में वह बसपा के टिकट पर महापौर का चुनाव लड़ी थीं और बीजेपी प्रत्याशी को हरा दिया था. सुनीता वर्मा को 2 लाख 34 हजार 817 वोट मिले थे, जबकि बीजेपी की कांता कर्दम को 2 लाख 5 हजार 235 वोट मिले थे. हालांकि बाद में उन्होंने सपा का दामन थाम लिया था. 2007 में उनके पति योगेश वर्मा भी बसपा के टिकट पर हस्तिनापुर सीट से विधायक रह चुके हैं.

2017 में सुनीता वर्मा को मुस्लिम-दलित समीकरण के सहारे ही जीत मिली थी. अखिलेश यादव ने शायद इसी समीकरण के सहारे ही सुनीता वर्मा को टिकट दिया है. क्योंकि मेरठ में करीब 9 लाख वोटर से भी ज्यादा वोटर दलित-मुस्लिम से बताए जाते हैं. ये मेरठ की कुल जनसंख्या का करीब आधा है.

हालांकि बीजेपी ने भी मेरठ में जातीय समीकरण का ख्याल रखा है. मेरठ से अभी राजेंद्र अग्रवाल बीजेपी सांसद हैं. उन्हीं की तरह अरुण गोविल भी अग्रवाल हैं. पार्टी ने अरुण गोविल को मेरठ के लिए चुना क्योंकि उन्हें भगवान राम का प्रतिनिधि चरित्र और हिंदुत्व का चेहरा माना जाता है.

मायावती ने क्या खेल खेला
उधर मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने त्यागी समुदाय से देवव्रत त्यागी को मैदान में उतारा है. मेरठ में मायावती की नजर मुस्लिम-दलित के साथ-साथ राजपूत और त्यागी समुदायों पर भी है क्योंकि मेरठ में ज्यादातर राजपूत-त्यागी समुदाय ने बीजेपी के प्रति अपना असंतोष जताया है. इसी कारण बसपा मुस्लिम-दलित के साथ-साथ बीजेपी का विरोध करने वाले हिंदू वोटर्स को लुभाने की कोशिश में है. इससे पहले के दो लोकसभा चुनाव में बसपा ने मुस्लिम कैंडिडेट ही मैदान में उतारा था. इस बार राजपूत-त्यागी वोट बैंक पर भी बसपा की नजर है.

मेरठ में पिछले लोकसभा चुनाव का समीकरण
मेरठ में पिछले तीन लोकसभा चुनाव (2009, 2014, 2019) से लगातार बीजेपी नेता राजेंद्र अग्रवाल जीत हासिल करते आ रहे हैं. राजेंद्र अग्रवाल ने 2009 में करीब 50 हजार और 2014 में दो लाख 32 हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल की. हालांकि 2019 में भी वह जीते तो मगर सिर्फ पांच हजार वोटों से अंतर से.

इससे पहले 2004 चुनाव में बीएसपी नेता मोहम्मद शाहिद ने मेरठ सीट पर करीब 70 हजार वोटों से जीत हासिल की थी. समाजवादी पार्टी आज तक कभी इस सीट पर चुनाव नहीं जीत सकी है. हालांकि 2014 और 2009 चुनाव में सपा उम्मीदवार शाहिद मंजूर ने अच्छी बढ़त हासिल की थी. सपा को करीब 20 से 25 फीसदी वोट पड़े थे.

मेरठ में इस बार 2024 का चुनाव सबसे अलग है. राजपूत और त्यागी समुदाय के बीजेपी से नाराजगी के कारण कुछ भी समीकरण बदल सकते हैं. मुस्लिम-दलित वोट बैंक पर सपा और बसपा दोनों की नजर है. खैर तीनों ही दल सभी समुदाय के लोगों को लुभाने की कोशिश में लगे हैं. मेरठ लोकसभा सीट किस पार्टी के खाते में जाएगी, ये तो 4 जून को चुनाव नतीजे आने के बाद ही साफ होगा.

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