LS Polls : सूरत में बिना चुनाव ही भाजपा से कैसे हार गई कांग्रेस, आखिर क्यों रद्द होते हैं उम्मीदवारों के पर्चे?
(जनरपट चुनाव डेस्क) देश में इस समय चुनावी माहौल है। लोकसभा के पहले चरण के लिए मतदान संपन्न हो चुका है जबकि 26 अप्रैल को दूसरे दौर का मतदान होना है। तीसरे चरण का नामांकन खत्म हो गया है जबकि चौथे चरण की प्रक्रिया अभी जारी है। इस बीच, कई प्रमुख दलों के उम्मीदवार ऐसे भी हैं जिनके नामांकन ही रद्द हो गए हैं। हालिया मामला सूरत का है जहां कांग्रेस के प्रत्याशी का पर्चा खारिज हो गया है। सूरत में कांग्रेस के अलावा बाकी उम्मीदवारों ने अपना पर्चा वापस ले लिया जिसके चलते भाजपा यहां निर्विरोध जीत गई। चुनाव अधिकारी ने भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया है।
हालांकि, इस चुनाव में यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले खजुराहो और कोकराझार में उम्मीदवारों के नामांकन रद्द हो चुके हैं। आइये जानते हैं कि आखिर किन उम्मीदवारों का पर्चे निरस्त हुए हैं? इन प्रत्याशियों के नामांकन रद्द होने की वजह क्या रहीं? आखिर पर्चा दाखिल करने के नियम क्या होते हैं?
किन उम्मीदवारों का पर्चे निरस्त हुए हैं?
सूरत: यहां से कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुम्भाणी का नामांकन पत्र रविवार (21 अप्रैल) को खारिज कर दिया गया। दरअसल, उनके तीन प्रस्तावकों ने जिला निर्वाचन अधिकारी को हलफनामा सौंपते हुए कहा था कि नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर उनके नहीं हैं। इसके अलावा सूरत से कांग्रेस के वैकल्पिक उम्मीदवार सुरेश पडसाला का नामांकन पत्र भी अवैध करार दिया गया है। नामांकन पत्र खारिज होने से कांग्रेस शहर में चुनावी मुकाबले से बाहर हो गई है। निर्वाचन अधिकारी सौरभ पारधी ने अपने आदेश में कहा कि कुम्भणी और पडसाला द्वारा सौंपे गए नामांकन पत्रों में प्रस्तावकों के हस्ताक्षरों में प्रथम दृष्टया गलतियां पाई गईं। जिसके बाद नामांकन पत्र खारिज कर दिए गए। उन्होंने कहा कि प्रस्तावकों के हस्ताक्षर असली नहीं दिखते। हालांकि, कांग्रेस के वकील ने कहा है कि अब वे इस मामले में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे।
बरेली: इस लोकसभा सीट से बसपा प्रत्याशी का नामांकन पत्र खारिज हो गया है। बरेली से छोटेलाल गंगवार ने नामांकन पत्र दाखिल किए गए थे। 20 अप्रैल को नामांकन पत्रों की जांच हुई। जांच में बसपा प्रत्याशी के नामांकन पत्रों में त्रुटि मिलने के कारण खारिज कर दिया गया है। अब बसपा बरेली के चुनावी मैदान से बाहर हो गई है।
कोकराझार: लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ने जा रहे कोकराझार के सांसद नबा कुमार सरानिया का नामांकन पत्र 21 अप्रैल को रद्द कर दिया गया। रिटर्निंग ऑफिसर प्रदीप कुमार द्विवेदी ने इस बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सरानिया का नामांकन पत्र अवैध पाया गया, इस वजह से यह कार्रवाई की गई। बता दें कि गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) के प्रमुख सरानिया 2014 से कोकराझार सीट पर निर्दलीय सांसद हैं।
खजुराहो: मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने प्रदेश की 29 में से खजुराहो सीट समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ी थी। यहां से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार मीरा दीपनारायण यादव का नामांकन भरा था जो निरस्त हो गया। जिला कलेक्टर ने इसकी दो वजह बताई थी। नामांकन फॉर्म पर प्रत्याशी के दो जगह हस्ताक्षर होते हैं, जिसमें से एक जगह मीरा यादव ने हस्ताक्षर नहीं किए थे। मतदाता पहचान पत्र की सत्यापित प्रति की जगह पुरानी प्रति दे दी गई थी। हालांकि, मीरा यादव के पति दीपनारायण यादव ने कहा था कि इस फैसले को हाईकोर्ट में और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
इसके अलावा, कई निर्दलीय और गैर मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदारों के भी नामांकन निरस्त हुए हैं।
आखिर पर्चा दाखिल करने के नियम क्या होते हैं?
संविधान और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ सकता है, बशर्ते कि उसके पास उस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने की योग्यता हो। उम्मीदवार या उसके प्रस्तावक नामांकन पत्र रिटर्निंग ऑफिसर या चुनाव की अधिसूचना में निर्दिष्ट सहायक रिटर्निंग ऑफिसर को सौंप सकते हैं।
उम्मीदवार को अपना नामांकन पत्र निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि से पहले या उससे पहले पहुंचाना आवश्यक है। चुनाव आयोग के मुताबिक, उम्मीदवार को नामांकन पत्र दाखिल करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। इसके साथ ही रिटर्निंग अधिकारी को नामांकन प्रस्तुत करते समय उसी समय प्रारंभिक जांच करनी चाहिए और यदि कोई प्रथम दृष्टया गलती उसे दिखाई देती है, तो उसे उम्मीदवार के ध्यान में लाना चाहिए। नामांकन पत्र में लिपिकीय या मुद्रण संबंधी गलतियों को नजरअंदाज किया जाना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उम्मीदवार को नामांकन पत्र दाखिल करते समय सावधानी नहीं बरतनी चाहिए और रिटर्निंग ऑफिसर को ऐसी गलतियों को उम्मीदवार के ध्यान में नहीं लाना चाहिए।
आखिर प्रत्याशियों के पर्चे क्यों निरस्त हो जाते हैं?
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कुछ प्रक्रियात्मक आवश्कताएं होती हैं जैसे कुछ ने सिक्योरिटी डिपॉजिट जमा किया होना चाहिए। प्रत्याशी के असली हस्ताक्षर होने चाहिए। प्रस्तावक के हस्ताक्षर असली हस्ताक्षर होने चाहिए और मतदाता सूची में उसका नाम होना चाहिए। ये सब बातें होती हैं।
नामांकन पत्र में हस्ताक्षर के महत्व पर सुभाष कश्यप कहते हैं, ‘यदि यह साबित हो जाए कि प्रत्याशी के बदले किसी और ने हस्ताक्षर किए हैं तो नामांकन खारिज हो जाना चाहिए।’