November 17, 2024

NDA 3.0 : ‘सहारे’ की सरकार में क्या होगा मोदी की इन गारंटियों का, नायडू और नीतीश को कैसे करेंगे मैनेज?

नई दिल्ली। 18वीं लोकसभा की सियासी तस्वीर करीब-करीब साफ हो चुकी है। हालांकि नतीजे चौंकाने वाले रहे, लेकिन भाजपा ने सहयोगियों के साथ सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है। हालांकि इस बार बदलाव ये होगा कि मोदी 3.0 सरकार इस बार सहयोगियों की ‘बैसाखियों’ के सहारे चलेगी। वहीं, ‘सहारे’ की सरकार चलाना भाजपा और मोदी के लिए टेढ़ी खीर साबित होने वाला है। क्योंकि मोदी 2.0 में जिन मुद्दों के सहारे हवा बना भाजपा चुनावों में उतरी थी, मोदी 3.0 में उन्हें सहयोगियों के सहारे जमीन पर उतारना कठिन साबित होने वाला है। इनमें वन इलेक्शन-वन नेशन, यूनिफॉर्म सिविल कोड शामिल हैं, इन्हें भाजपा के संकल्प पत्र और मोदी की गारंटी में शामिल किया गया है। इसके अलावा भाजपा ने परिसीमन का काम चुनावों बाद शुरू करने का वादा किया था। इन मुद्दों को लेकर अब कहा जा रहा है कि इन्हें लागू करने को लेकर आने वाले समय में भाजपा की सहयोगियों के साथ खटपट हो सकती है।

टीडीपी ने भाजपा को दी लिस्ट
भाजपा को इस बार तीसरी बार सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचने के लिए सहयोगियों की जरूरत होगी। 272 का जादुई आंकड़ा छूने के लिए इस बार भाजपा को नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के कंधे की जरूरत पड़ेगी। दोनों को साधने के लिए भाजपा ने तैयारियां शुरू कर दी हैं, लेकिन दोनों का साथ इस भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है। टीडीपी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने लोकसभा स्पीकर, रोड ट्रांसपोर्ट, रूरल डेवलपमेंट, हेल्थ, हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स, कृषि, जल शक्ति, आईटी एंड कम्यूनिकेशंस, एजुकेशन, फाइनेंस (एमओएस) समेत पांच-छह कैबिनेट और राज्य मंत्री का पदों की डिमांड की है। वहीं जेडीयू ने भी स्पीकर के पद की मांग के साथ कैबिनेट में उचित प्रतिनिधित्व मांगा है। भाजपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि दोनों दलों की डिमांड लिस्ट आ गई है। इस पर फैसला भाजपा के नेतृत्व को लेना है। भाजपा नेतृत्व की भी कुछ आशंकाएं और मांगें हैं, जब साथ बैठेंगे तो कुछ न कुछ रास्ता जरूर निकलेगा।

नायडू ने मोदी को कहा था ‘कट्टर आतंकवादी’
यह पूछने पर कि नायडू और नीतीश के साथ भाजपा के रिश्ते तो इतने सहज नहीं रहे हैं, तो इस पर भाजपा के सूत्र कहते हैं कि सरकार बनानी है, तो दोनों को साधना होगा और भाजपा नेतृत्व इसमें माहिर है। हालांकि दोनों दलों का साथ भाजपा के लिए इतना भी आसान नहीं रहने वाला है, क्योंकि जरूरत के वक्त अगर किन्हीं मुद्दों पर उन्होंने भाजपा के साथ असहमति जताई, तो ये समर्थन की समीक्षा करने में भी संकोच नहीं करेंगे। इसका ट्रेलर भाजपा 2018 में देख चुकी है। जब आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने पर टीडीपी ने मोदी सरकार का साथ छोड़ दिया था। दोनों के रिश्ते इतने खराब हो गए थे कि नायडू ने मोदी को ‘कट्टर आतंकवादी’ तक बता दिया था। 2018 में टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रबाबू नायडू की तुलना ‘भ्रष्ट राजनीतिज्ञ’ से की थी। बाद में, 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद जब टीडीपी ने जब दोबारा से भाजपा के साथ संबंध जोड़ने की कोशिश की, तो भाजपा ने एनडीए में वापसी को लेकर कड़ा रुख अपनाया था। बाद में जब इस साल फरवरी में जेल से रिहा होने के बाद नायडू ने अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ एक मीटिंग की थी, उसके बाद रिश्ते सामान्य हुए थे।

फिर ‘बड़े भाई’ की भूमिका में ‘पलटू कुमार’
नीतीश कुमार की बात करें, तो उन्होंने सबसे पहले 2014 में मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने पर भाजपा के साथ अपने संबंध तोड़ लिए थे। हालांकि बाद में उन्होंने एनडीए में वापसी कर ली थी। लेकिन 2022 में आरजेडी और कांग्रेस के साथ बिहार में सरकार बनाने के बाद उन्होंने फिर भाजपा का साथ छोड़ा था और जातिजनगणना का दांव खेल कर भाजपा की सांसत बढ़ा दी थी।

हालांकि, बाद में आरजेडी पर परिवारवाद का आरोप लगा कर फिर से एनडीए में वापसी कर ली थी। भाजपा सूत्रों का कहना है कि भाजपा पर नीतीश कुमार हर बार भारी पड़े हैं। बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन में ‘बड़े भाई’ की भूमिका निभाते आए हैं। वे अपनी कीमत बखूबी जानते हैं। आप उन्हें भले ही ‘पलटू कुमार’ कह कर पुकार लें, लेकिन सियासी गणित में किंगमेकर की भूमिका में फिर से आ गए हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता स्वीकार करते हैं कि महत्वपूर्ण बात यह है कि गठबंधन सरकार का मतलब यह होगा कि सुधारों के साथ-साथ वैचारिक मोर्चे पर भी भाजपा की कई पसंदीदा परियोजनाएं ठंडे बस्ते में डाल दी जाएंगी। ये भी हो सकता है कि भाजपा के लिए अगले पांच साल केवल गठबंधन के सहयोगियों को मनाने में ही बीत जाएं।

टीडीपी ‘वन नेशन वन पोल’ पर लगा सकती है वीटो
भाजपा सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी ‘वन नेशन वन पोल’ योजना को लेकर खूब रिपोर्ट्स जारी कीं। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘वन नेशन वन पोल’ को लेकर कमेटी का गठन किया गया। सूत्र बताते हैं कि मोदी जी खुद इस योजना पर नजर रख रहे थे। वहीं, मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में टीडीपी इस योजना पर वीटो लगा सकती है।

वहीं, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रति अपना समर्थन जाहिर करते हुए, जेडीयू ने रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमिटी को ज्ञापन भी सौंपा था, लेकिन इस बार नीतीश का इसे लेकर क्या रुख रहेगा, यह देखने वाली बात होगी। वहीं ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रावधान लाने के लिए भी 20 सितंबर, 2023 को अमित शाह ने कहा था कि परिसीमन का काम 2024 के लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद शुरू होगा।

समान नागरिक संहिता का क्या होगा?
वहीं यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर भी भाजपा को अपने पैर खींचने पड़ सकते हैं। उत्तराखंड पहला राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता को लागू किया गया है। भाजपा की तैयारी इसे पूरे देश में लागू करने की थी। लॉ कमीशन इस पर काम कर रहा था। कमीशन ने इस पर आम लोगों से सुझाव भी मांगे थे, जिस पर 7.5 लाख लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया भी दी थी। गृहमंत्री अमित शाह ने एक समाचार एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में वापसी करती है, तो अगले पांच साल के कार्यकाल में सरकार देशभर में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी लागू करेगी। लेकिन नई लोकसभा में संभावित समीकरणों को देखते हुए भाजपा इस योजना को अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं की सूची से भी हटा सकती है।

परिसीमन का अमित शाह ने किया था वादा
इसके अलावा परिसीमन प्रक्रिया और जनगणना का काम भी बाकी है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम– संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) विधेयक 2023, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण प्रदान करता है– को संसद से मंजूरी मिल चुकी है। लेकिन यह तभी लागू हो पाएगी, जब परिसीमन प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। भाजपा ने 2029 तक महिला आरक्षण को लागू करने का वादा किया है। लेकिन टीडीपी के रुख को देखते हुए भाजपा को 2026 में होने वाली परिसीमन प्रक्रिया पर अपना रुख बदलने के लिए भी मजबूर होना पड़ सकता है। 2024 के चुनाव प्रचार के दौरान, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट रूप से कहा था कि परिसीमन प्रक्रिया निर्धारित समय अवधि में होगी।

स्पीकर पद पर नीतीश, नायडू की नजरें
टीडीपी और जेडीयू दोनों की निगाहें लोकसभा के स्पीकर पद पर है। सूत्रों ने बताया कि दोनों दलों ने पहले ही भाजपा नेतृत्व को संकेत दे दिया है कि स्पीकर का पद गठबंधन सहयोगियों को दिया जाना चाहिए। इससे पहले 1990 के दशक के अंत में जब अटल बिहारी वाजपेई गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे, तब टीडीपी के जीएमसी बालयोगी स्पीकर थे। सूत्रों ने बताया कि दोनों दल भाजपा की फितरत को जानते हैं, इसलिए फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि दोनों सहयोगियों ने यह कदम भविष्य में किसी भी ऑपरेशन लोटस से बचने के लिए उठाया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि बुधवार को नई दिल्ली में होने वाली एनडीए की बैठक में नायडू और नीतीश आधिकारिक तौर पर स्पीकर पद देने की मांग उठाएंगे या नहीं। लोकसभा अध्यक्ष का पद आमतौर पर सत्तारूढ़ गठबंधन के पास जाता है, जबकि उपाध्यक्ष का पद पारंपरिक रूप से विपक्षी दल के पास होता है। हालांकि, लोकसभा के इतिहास में पहली बार, 17वीं बिना लोकसभा उपाध्यक्ष चुने ही समाप्त हो गई।

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