राज्यों में अपने बड़े चेहरे के नेतृत्व को आगे रख कर चुनावी मैदान में क्यों नहीं उतर रही है बीजेपी?
भारतीय जनता पार्टी राज्यों के बड़े नेताओं को आगे रखकर चुनावी समर में उतरने नहीं जा रही है, ये साफ दिखने लगा है. छत्तीसगढ़ में रमन सिंह, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुधंरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं दिख रही है. बीजेपी अपने पत्ते इन राज्यों में चुनाव से पहले नहीं खोलना चाहती है. जाहिर है इन राज्यों के स्थापित नेताओं की भूमिकाओं को लेकर सवाल उठने लगे हैं और पार्टी नए विकल्प की तलाश में है, इसकी चर्चा जोरों से हो रही है.
पंद्रह सालों तक छत्तीसगढ़ बीजेपी का मुख्य चेहरा कहलाने वाले रमन सिंह पिछले पांच सालों में अपनी राजनीतिक जमीन को सहेजते नजर आए हैं. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद रमन सिंह को नेपथ्य में ही देखा गया है. हाल ही में राज्य में विकास को चेहरा और मुद्दा आगामी चुनाव में बनाने की बात कह बीजेपी के छत्तीसगढ़ प्रभारी ने राज्य में बीजेपी के नेतृत्व को लेकर कई संभावनाओं की ओर इशारा कर दिया है.
क्या छत्तीसगढ़ में दांव पर है रमन सिंह का भविष्य?
प्रभारी की घोषणाओं से ये तय हो गया है छत्तीसगढ़ का चुनाव रमन सिंह के चेहरे पर नहीं लड़ा जाएगा और भविष्य की राजनीति वैकल्पिक नेतृत्व की ओर बढ़ रही है. ये अब साफ-साफ राज्य के लोगों को दिखने लगा है. माना जा रहा था कि रमन सिंह की लोकप्रियता और जनाधार को देखते हुए बीजेपी फिर से उन्हें मौका दे सकती है. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही बीजेपी रमन सिंह से किनारा करती दिखी है.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह को टिकट नहीं देकर पार्टी ने अपनी मंशा साफ जाहिर कर दी थी. वहीं रमन सिंह के समर्थक सांसदों के टिकट काटकर रमन सिंह के विरोधी कहे जाने वाले राज्सभा सांसद सरोज पांडे की लोकसभा चुनाव के टिकट बंटवारे में खूब चली थी. बीजेपी में चर्चा जोरों पर है कि रमन सिंह के दिन इस नेतृत्व में लद चुके हैं और केंद्रीय नेतृत्व विकल्प की तलाश का मन बना चुका है.
जाहिर है छत्तीसगढ़ को नया रायपुर शहर देने से लेकर स्टील के उत्पाद सहित अन्य मापदंडों में आगे ले जाने का श्रेय लेने वाले रमन सिंह पर केंद्रीय नेतृत्व भरोसा करने को लेकर गहरी सोच में है. वैसे रमन सिंह के समर्थक अभी भी राज्य में संगठन पर मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं. लेकिन पार्टी की दशा और दिशा रमन सिंह के विपरीत जाती दिख रही है, ये बीजेपी के नेता भी अनौपचारिक बातचीत में कहने लगे हैं. औपचारिक तौर पर बीजेपी पार्टी के ट्रेडिशन का हवाला देकर छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को बड़े चेहरे के तौर पर पेश कर रही है, लेकिन बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व नई पौध की तलाश में है, इस सच को राज्य की बीजेपी इकाई लगभग स्वीकार कर चुकी है.
राजस्थान-MP में भी विकल्प तलाश रही BJP?
वसुंधरा राजे सिंधिया बीजेपी के नेतृत्व को समय-समय पर चुनौती देती रही हैं, ये सच सबके सामने है. साल 2020 में ऑपरेशन लोटस की असफलता के पीछे वसुंधरा राजे का ही हाथ माना जाता है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों के नेता वसुंधरा राजे और अशोक गहलौत की दोस्ती का राज समझ चुके हैं. इसलिए सचिन पायलट कांग्रेस में अपने ही सरकार पर वसुंधरा के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने को लेकर आरोप लगाते हुए पैदल यात्रा तक निकाल चुके हैं.
बीजेपी वसुंधरा के विकल्प की तलाश में लगातार जुटी दिखी है, लेकिन नए नेतृत्व की ताकत पर पूरा भरोसा कर नहीं पा रही है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर दो ऐसे नेताओं को कमान सौंपी है जो वसुंधरा राजे के धुर विरोधी कहे जाते हैं. लेकिन पार्टी के लिए वसुंधरा राजे को पूरी तरह से दरकिनार कर पाना संभव नहीं सो सका है. फिलहाल बीजेपी इस जोखिम को उछालने के पक्ष में नहीं है. लेकिन वसुंधरा राजे के हाथों नेतृत्व सौंपने को लेकर भी परहेज कर रही है.
वसुंधरा राजस्थान में पार्टी की सबसे मजबूत नेता के तौर पर जानी जाती हैं. इसलिए पीएम का दौरा हो या हाल के दिनों में राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा का राजस्थान का दौरा, वसुंधरा राजे स्टेज पर पूरी धमक के साथ बैठी दिखी हैं. हाल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के दौरे के अवसर पर वसुंधरा आने वाले चुनाव में अपनी भूमिका को लेकर सवाल कर चुकी हैं, ऐसा कहा जा रहा है. लेकिन केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के पक्ष में पूरी तरह नहीं दिख रहा है. जाहिर है वसुंधरा को राज्य की राजनीति में मजबूत पकड़ की वजह से खारिज कर पाना मुश्किल दिख रहा है, लेकिन वसुंधरा की राहें भी मध्य प्रदेश में शिवराज और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की तरह जाती दिख रही हैं.
बीजेपी राजस्थान में अपने सबसे मजबूत चेहरे पर दांव खेलने को लेकर सोच विचार कर रही है. इसलिए राजस्थान में वैकल्पिक नेतृत्व की संभवानाएं बनी हुई हैं. यही हाल मध्य प्रदेश का है, जहां 18 सालों से बीजेपी की सरकार शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में कार्यरत रही है. बीजेपी यहां पीएम के चेहरे पर चुनाव लड़ने की ओर आगे बढ़ती दिख रही है. बीजेपी के चुनावी सॉन्ग लॉचिंग में पीएम के कामों और केंद्रीय योजनाओं को प्रमुखता दी गई है
लोकसभा से उलट क्यों है राज्यों में BJP की रणनीति?
लोकसभा में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी होंगे, इसकी घोषणा बीजेपी गर्व से करती है. लेकिन राज्यों में अपने स्थापित चेहरे को लेकर बीजेपी पूरी तरह डिफेंसिव दिखाई पड़ रही है. जाहिर है विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना सकता है. दरअसल मध्य प्रदेश में 18 सालों तक सरकार बने रहने की वजह से एंटी इन्कमबेंसी और भ्रष्टाचार को कांग्रेस बड़े मुद्दे के तौर पर पेश करने का मन बना चुकी है. शिवराज सिंह चौहान को पिछले विधानसभा चुनाव में जनता नकार चुकी थी. इसलिए बीजेपी इन आरोपों की काट के तौर पर पीएम के चेहरे पर चुनाव लड़ने का दांव खेल रही है.
बीजेपी थिंक टैंक का मानना है कि बीजेपी के लिए पीएम मोदी हमेशा से मैच विनर रहे हैं और कांग्रेस के आरोपों की काट के लिए उनसे बेहतर विकल्प कोई नहीं हो सकता है. लेकिन राज्य में अलग नेतृत्व की गुंजाइश अब पूरी तरह दिखने लगी है. छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी नेतृत्व परिवर्तन की राह पर आगे बढ़ती दिख रही है. वहीं राजस्थान में बीजेपी का इरादा भी वैसा ही दिखा है.
बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर नई संभावनाओं की ओर पुरजोर इशारा कर रहा है. ऐसे में कर्नाटक में मिली हार के बावजूद बीजेपी नए प्रयोग करने की संभावनाओं से पीछे हटती नहीं दिख रही है. ये बात और है कि कर्नाटक में चुनाव से पहले नेतृत्व परिवर्तन किया गया था, लेकिन इन राज्यों में चुनाव बाद की संभावनाओं को खारिज नहीं किया जा सकता है.
कर्नाटक-हिमाचल की हार नहीं बनी BJP के लिए सबक?
कर्नाटक में बीजेपी पीएम मोदी को आगे कर चुनाव लड़ने की मंशा से मैदान में उतरी थी. ये सच है कि पिछले 9 सालों में पीएम मोदी के आस-पास किसी भी दल के नेताओं की लोकप्रियता नहीं दिखाई पड़ती है. लेकिन विधानसभा चुनाव में लोकल मजबूत क्षत्रपों को हरा पाना बीजेपी के लिए संभव नहीं हो सका है. कर्नाटक, बंगाल, ओडिशा, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित हिमाचल प्रदेश, पंजाब और दिल्ली में पीएम के ताबड़तोड़ दौरों के बावजूद विधानसभा चुनाव जीता नहीं जा सका है.
राज्यों में मजबूत विपक्षी नेतृत्व को हरा पाने में बीजेपी तभी सफल रही है जब बीजेपी का लोकल नेतृत्व विपक्षी नेताओं के मुकाबले मजबूत दिखा है. कर्नाटक में येदियुरप्पा के बाद बसवा राज बोम्मई का प्रयोग सफल नहीं हो सका था. वहीं हिमाचल, पंजाब, दिल्ली और बंगाल में बीजेपी विपक्ष के सामने मजबूत लोकल नेतृत्व खड़ा करने में सफल नहीं रही है. उत्तराखंड और गुजरात में बीजेपी को जीत जरूर मिली, लेकिन यहां भी बीजेपी पीएम मोदी के अलावा लोकल नेतृत्व के सहारे लोगों का भरोसा जीतने में सफल रही है. इसलिए इन राज्यों में बीजेपी सफल हुई है. विधानसभा चुनावों में मजबूत विपक्षी लोकल नेता बीजेपी की जीत की राह में अवरोधक रहे हैं. इसलिए बीजेपी के लिए लोकल नेतृत्व को दरकिनार कर विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी मुश्किलें पैदा कर सकती हैं.