September 20, 2024

CG : यहां है विश्व की पहली जुड़वा भगवान गणेश की प्रतिमा, भारत में दूसरी सबसे बड़ी; जानें इतिहास

रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश हमेशा से अपने ऐतिहासिक धरोहरों को लेकर चर्चा में रहा है. यहां के हर क्षेत्र में इतिहास से जुड़ी जानकारी, धरोहर या स्थान के बारे में जान सकते हैं. इन दिनों छत्तीसगढ़ में गणेश चतुर्थी की तैयारी जोरों पर है. इसी कड़ी में हम आपको प्रथम पूज्य श्री गणपति जी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने वाले हैं जो छत्तीसगढ़ में स्थित है. आइये जानते हैं इसके इतिहास और खासियत के बारे में…

वैसे तो यहां विघ्नहर्ता भगवान गणेश के मंदिर में हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन गणेशोत्सव के अवसर पर अलग ही माहौल रहता है. हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचल यानी बस्तर स्थित एकाश्म गणेश की जिसकी कहानी बड़ी ही रोचक हैं.

छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग के पुरातत्त्ववेत्ता प्रभात कुमार सिंह ने बताया कि बस्तर के दंतेवाड़ा जिले स्थित देवनगरी बारसर में भगवान गणेश की प्राचीन मंदिर है जो 11वीं – 12 वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी राजा के द्वारा बनाई गई है. यहां विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है और यह विश्व की पहली भगवान गणेश की जुड़वा प्रतिमा भी है.

इस गणेश प्रतिमा की खास बात यह है कि यह हजार साल पुरानी है और एक ही पत्थर में बनाई गई विश्व की पहली जुड़वा गणेश की प्रतिमा है. जिसे देखने केवल देश से ही नही बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं.

दंतेवाड़ा शहर से करीब 31 किलोमीटर दूर और राजधानी रायपुर से करीब 390 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है देवनगरी बारसूर है. यहां रियासत काल में 147 तालाब और 147 मंदिरे हुआ करते थे ,जो अपने आप में ऐतिहासिक है, इन मंदिरों में जो विशेष मंदिर है वह आज भी मौजूद हैं. जिन्हें पुरातत्व विभाग ने संरक्षण और संवर्धन कर रखा है, उनमें से ही एक भगवान गणेश का मंदिर है.

विशाल एकाश्म गणेश प्रतिमाएं की प्रतिकृति आप राजधानी रायपुर के महंत घासीदास संग्रहालय में दर्शन कर सकते हैं. गणपति जी धोती और यज्ञोपवीत धारण किये आसन मुद्रा में चित्रित हैं. यह 2.25 मीटर ऊंची बड़ी गणेश मूर्ति की प्रतिकृति है जो भारत में दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है. चतुर्भुजी गणेश के बाएं हाथों में क्रमशः मोदक और दंत है. ऊपरी दाहिना हाथ खण्डित है जबकि निचले दाहिने हाथ में अक्षमाला है.

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