होलाष्टक : होली के आठ दिन पहले से बंद हो जाते हैं शुभ संस्कार
रायपुर। होलाष्टक होली से पहले के आठ दिनों को कहा जाता है। होलाष्टक को अशुभ मानने की मान्यता के चलते आठ दिनों तक किसी भी तरह के शुभ संस्कार नहीं किये जाएंगे। इस दौरान पूजा-पाठ करना ही श्रेष्ठ माना जाता है। होलाष्टक दो मार्च से प्रारंभ हो रहा है, जो नौ मार्च यानी होलिका दहन तक रहेगा। शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है। नौ मार्च को होलिका दहन के बाद अगले दिन 10 मार्च को रंगों का त्योहार होली धूमधाम से मनाया जाएगा। राजधानी के पुजारी पं. अजय शर्मा और ओमप्रकाश दुबे बताते हैं कि पौराणिक कथा के अनुसार भक्त प्रहलाद को उनके पिता हिरण्यकशिपु ने आठ दिनों तक घोर यातना दी थी। उन्हें पहाड़ से नीचें फेंकना, जंगली-जानवरों के बीच छोड़ देना, जलाने के लिए जीवित आग में बिठा देना जैसे मृत्यु तुल्य यातना दी गई थी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रहलाद का बाल बांका भी नहीं हुआ। जिन आठ दिनों में प्रहलाद को यातनाएं दी थी, उन्हें ही होलाष्टक के नाम से जाना जाता है।
– विवाह : होली से पूर्व के आठ दिनों में भूलकर भी विवाह न करें। यह समय शुभ नहीं माना जाता है।
-नामकरण एवं मुंडन संस्कार : अपने बधो का नामकरण या मुंडन संस्कार कराने से बचें।
– भवन निर्माण : किसी भी भवन का निर्माण कार्य प्रारंभ न कराएं। होली के बाद नए भवन के निर्माण का शुभारंभ कराएं। यदि पहले से ही भवन निर्माण प्रारंभ है तो कोई दिक्कत नहीं।
– हवन-यज्ञ : इस काल में हवन कराने से उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।
– नौकरी-व्यवसाय : नई नौकरी ज्वॉइन करने से बचें। कोई भी नया बिजनेस शुरू न करें। होली के बाद करना अच्छा होता है।
– भवन, वाहन खरीदारी : भवन, वाहन आदि की खरीदारी से बचें। शगुन के तौर पर भी रुपये आदि किसी को न दें।
पूजा करना लाभदायी
होलाष्टक में पूजा-अर्चना, कथा, प्रवचन, भजन, आरती, दान-पुण्य आदि करने से शुभ फल प्राप्त होता है।