सरगुजा। आज के दौर में ज्यादातर घरेलू विवाद महिला थाना और परिवार न्यायालय तक पहुंच जाते हैं, इस स्थिति में परिवार के बीच दूरियां और बढ़ती चली जाती हैं. छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के लखनपुर गांव में अब ऐसा नहीं हो रहा है. यहां अंबे दास नाम की एक महिला की कोशिशों की वजह से ज्यादातर केस समझाइश के जरिए सुलझाए जा रहे हैं.
अंबे दास चलाती हैं महिला समूह: दरअसल लखनपुर गांव में घरेलू विवाद या महिलाओं से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या सबसे पहले लोग जीआरसी यानी जेंडर रिसोर्स सेंटर लेकर पहुंचते हैं. इस सेंटर की प्रभारी अंबे दास हैं. उन्होंने पहले गांव में समूह बनाया और समूह की महिलाओं को जागरूक किया. फिर इस समूह के साथ मिलकर वो गांव की महिलाओं को सक्षम बनाने और उनके जीवन को बदलने में जुट गईं.
कई केसों का करती हैं निपटारा: लखनपुर गांव की निवासी राधा मिंज बताती हैं, ”सास ससुर शराब पीकर मारपीट करते थे, बहुत परेशान थी, पुलिस से अपने साथ हो रहे अत्याचार की शिकायत करने वाली थी. लेकिन समूह की दीदी लोगों को पता चला तो वो सब ससुराल वालों को समझाए, सास ससुर को कहा कि शराब पीकर बहू को पीटना सही नहीं है, समझाइश के बाद सब ठीक से रहते हैं.”
एनआरएलएम के जिला मिशन प्रबन्धक नीरज नामदेव बताते हैं कि शासन के निर्देश पर लखनपुर में जीआरसी सेंटर (जेंडर रिसोर्स सेंटर) खोला गया है. इसमें अम्बे दास अपने समूह के साथ काम कर रही हैं. अब तक इस सेंटर में 54 मामले आ चुके हैं. जिनमें से 37 मामलों के पारिवारिक विवाद जीआरसी सेंटर में ही सुलझा लिए गये हैं. आज वो परिवार एक साथ रह रहे हैं.
जिला मिशन प्रबंधक नीरज नामदेव कहते हैं कि जीआरसी सेंटर ने दो युवतियों को ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे मामले से भी बाहर निकला है, उन्हें नौकरी का लालच देकर फंसाया जा रहा था, लेकिन दीदियों की सूझ बूझ से उन्हें बचा लिया गया.
अंबे दास ने अब तक कुल 37 केस सुलझाए: अंबे दास की अगुवाई में महिला समूह ने एक दो नहीं बल्कि 37 मामले सुलझाए हैं. जिनमें ना थाना जाने की नौबत आई और ना ही मामला न्यायालय पहुंचा और विवाद सुलझने के बाद परिवार आज खुशहाल हैं. अंबे दास बताती हैं कि साल 2022 में यहां जीआरसी सेंटर खोला गया है. जीआरसी सेंटर खोलने का मुख्य उद्देश्य है कि महिला उत्पीड़न रुक सके, महिलाएं अपने अधिकार के प्रति जागरूक हो सकें.
छोटे मोटे विवाद के कारण परिवार नहीं टूटना चाहिए. हम महिलाओं को जागरूक करने का काम करते हैं- अंबे दास, प्रभारी जीआरसी, सेंटर
गांव की ही एक पीड़िता की बहन सुनीता बताती हैं कि “मेरी दीदी को मेरे जीजा बेच रहे थे, दीदी छुप के फोन कि तो मैं भी घबरा कर रोने लगी. इसके बाद जब गांव की दीदी लोगों से बताई तो वो लोग साहस दिए. हमें बताए कि जीआरसी सेंटर में उनको मदद मिलेगी. फिर सब दीदी लोग मिलकर जीजा को समझाए, जिसके बाद सब कुछ ठीक हो गया. आज दीदी और जीजा एक साथ रहते हैं और उनकी एक बेटी भी है.”