April 16, 2025

छत्तीसगढ़ : गाय के गोबर से बनीं हनुमान प्रतिमा, 350 साल से जस की तस, चमत्कारों से भरा है धाम

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दुर्ग। हनुमान जयंती के अवसर पर आज हम आपको ऐसी जगह लेकर चल रहे हैं,जहां एक दो नहीं बल्कि अनेक चमत्कार हुए.इन चमत्कारों के प्रमाण आज भी हमारे बीच मौजूद है. तो आईए जानते हैं,ये चमत्कार कहां हुए.

गाय के गोबर से बने हनुमान : दुर्ग-भिंभौरी मार्ग पर नारधा गांव में बाबा रुक्खड़नाथ का धाम है. नारधा गांव में एक ऐसा हनुमान मंदिर है,जहां के हनुमान गाय के गोबर से बने हैं. मंदिर के पुजारी की माने तो हनुमान जी की मूरत 350 साल से भी ज्यादा पुरानी है.ये मूर्ति मिट्टी या पत्थर की ना होकर सुरहीन गाय के गोबर से बनीं है.आज भी ये मूर्ति अपने असली स्वरूप में हैं.कई पीढ़ियां आई और गईं लेकिन हनुमान जी की गोबर की प्रतिमा में जरा भी बदलाव नहीं आया.

मंदिर में होते हैं अनेक चमत्कार : ऐसा माना जाता है कि गाय में 33 करोड़ हिंदू देवी देवताओं का वास होता है.गाय की पूंछ में हनुमान वास करते हैं.इसी कारण से यहां के बाबा रुक्खड़नाथ जी ने सदियों पहले गौ के गोबर से प्रतिमा बनाई. औघड़ बाबा रुक्खड़नाथ महान तपस्वी और योग साधक थे.जिन्होंने कई चमत्कार ग्रामीणों को दिखाए. मंदिर की पुजारी की माने तो एक बार बाबा रुक्खड़नाथ ने अपने शरीर को गांव की समाधि में रखा.इसके बाद 150 किलोमीटर दूर खैरागढ़ में प्रकट हो गए. खैरागढ़ में आज भी बाबा की भभूती और पिंड जागृत अवस्था में पूजित हैं.

मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड भी है, जिसके जल को अमृत माना जाता है. इस जल से स्नान करने से चर्म रोग जैसे विकार भी स्वतः समाप्त हो जाते हैं. इस धाम में चूल्हा भी है, जहां पहले भक्तों के लिए प्रसाद बनाया जाता था.साथ ही एक नगाड़ा भी है जो जब बजता था तो आसपास के गांवों तक उसकी गूंज सुनाई देती थी-सुरेन्द्र गिरी गोस्वामी,पुजारी

पुजारी सुरेन्द्र गिरी गोस्वामी के मुताबिक जूना अखाड़ा से बाबा रूक्खड़नाथ ढाई सौ नागा साधुओं के साथ यहां तप करने आए थे.उन्होंने ही इस पवित्र स्थल की स्थापना की.उनके हाथों से बनी हनुमान प्रतिमा आज भी लोगों के बीच आस्था का केंद्र है. हमारे लिए सिर्फ एक पूजनीय मूर्ति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है. बाबा की समाधि के ऊपर भगवान भोलेनाथ का मंदिर स्थित है. वहीं पास ही दशनामी परंपरा से जुड़े कई साधुओं के मठ हैं. धनराज गिरी, दत्त गिरी, दौलत गिरी और मौनी गिरी जैसे नाम आज भी श्रद्धा से लिए जाते हैं. यहां की सेवा आज दत्त गिरी बाबा की छठवीं पीढ़ी कर रही हैं. बसंत गिरी, खेमगिरी, कुलेश्वर गिरी और कई अन्य संतों ने इस विरासत को संभाला है.यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक उत्तरदायित्व है,आस्था की जड़ें मजबूत बनाए रखने का कर्तव्य है.

खैरागढ़ राजघराने से भी इस धाम का गहरा नाता है. नागपुर रियासत के राजा रघुवर भोंसले और खैरागढ़ राज परिवार बाबा रूक्खड़नाथ के परम भक्त थे. यह सिर्फ एक ग्रामीण तीर्थस्थल नहीं, बल्कि राजसी आस्था का प्रतीक भी है. हर साल प्रदेशभर से हजारों श्रद्धालु इस धाम पर आते हैं. कोई बीमारी से मुक्ति की आशा में, कोई मनोकामना लेकर, तो कोई सिर्फ उस शांति की तलाश में, जो कहीं और नहीं मिलती. रुक्खड़नाथ धाम आज भी लोगों को अपने रहस्यों और कहानियों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.

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