उन आंखों में आईएएस बनने का सपना था…कहां हैं दिव्यकीर्ति, ओझा और बाकी स्टार गुरु? लोग ढूंढ रहे
नई दिल्ली। देश की राजधानी। विश्वगुरु का ख्वाब संजोए देश की राजधानी। विश्वस्तरीय शहर होने का ढिंढोरा। उसी शहर में कोई होनहार स्टूडेंट राह चलते बिजली के करंट से मर जाता है तो कहीं कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में भरे पानी में डूबकर मर जाते हैं। ये सबकुछ हो रहा है विश्वस्तरीय शहर में। देश की राजधानी में। उन आंखों में आईएएस बनने का सपना था। उन सपनों को तो छोड़िए, उन आंखों को, उन जिंदगियों को विश्वस्तरीय शहर के सड़े सिस्टम ने लील लिया। ये तो शर्मनाक है ही, उससे तनिक भी शर्मनाक नहीं है, सपनों के सौदागर कथित स्टार गुरुओं की चुप्पी। प्रति स्टूडेंट हजारों-लाखों रुपये वसूलकर आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनाने की ‘फैक्ट्री’ चलाने वाले विकास दिव्यकीर्ति, अवध ओझा, अलख पांडे जैसे सिलेब्रिटी गुरुओं की चुप्पी। कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबकर 3 जिंदगियां खत्म हो गईं, लेकिन दुनिया-जहान के हर विषय पर ज्ञान देने वाले इन स्टार गुरुओं के मुंह से संवेदना का एक बोल तक नहीं फूटा।
सोशल मीडिया के इस दौर में स्टार गुरु खुद को किसी सिलेब्रिटी से कम नहीं समझते। बात-बात पर ज्ञान। बड़ी-बड़ी बातें। रील का चस्का। रील्स में टीचर कम, मॉटिवेशनल स्पीकर ज्यादा। हर मोबाइल में रील के रूप में देखे जाने की हसरत। यू-ट्यूब शॉर्ट्स में छा जाने की ललक। लेकिन ये सर्वज्ञानी स्टार गुरु छात्रों की मौत पर चुप हैं। उनके लिए जैसे ये कोई मुद्दा ही नहीं। भविष्य बनाने, करियर बनाने, कल संवारने की दुकानें सजाकर बैठने वाले ये सपनों के सौदागर उन स्टूडेंट्स की मौत पर चुप हैं जो हो सकता था कि कल आईएएस बनते, आईपीएस बनते, बड़े अफसर बनते। यूपीएससी की तैयारी कर रहे स्टूडेंट अपने साथियों की मौत से आक्रोशित हैं। विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। सवाल उठा रहे हैं। उनके सवालों में एक सवाल ये भी है कि आखिर कहां हैं विकास दिव्यकीर्ति, अवध ओझा, अलख पांडे और बाकी स्टार गुरु। स्वयंभू सिलेब्रिटी। सपनों के सौदागर। उन्हें उम्मीद थी कि बड़ी-बड़ी बातें करने वाले ये सिलेब्रिटी कलाकार गुरु उनका साथ देने आएंगे। उन्हें समर्थन देने आएंगे। आना तो दूर, उनके मुंह से संवेदना के दो बोल तक नहीं फूट रहे।
भारत में कोचिंग सेंटर का बाजार बहुत तेजी से फैल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, अभी कोचिंग इंडस्ट्री 58,000 करोड़ रुपये की है। 2018 तक अनुमान है कि ये बढ़कर 1.33 लाख करोड़ रुपये का विशाल बाजार हो जाएगा। द एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, देश के ग्रामीण इलाकों में पहली से आठवीं कक्षा के 31 प्रतिशत छात्र प्राइवेट कोचिंग क्लास अटेंड करते हैं। बिहार में तो ये आंकड़ा 71 प्रतिशत और बंगाल में 74 प्रतिशत, झारखंड में 45 प्रतिशत है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पहली क्लास से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी तक, कोचिंग सेंटरों का बाजार कितना विस्तृत है। कई छोटे-छोटे कोचिंग सेंटर और प्राइवेट ट्यूशन सेंटर तो हैं हीं, बड़े कोचिंग सेंटर भी हैं। ये स्टूडेंट से मोटी फीस वसूलते हैं। गरीब मां-बाप के लिए अपने बच्चों को इन कोचिंग सेंटरों में पढ़ाना बहुत मुश्किल है। लेकिन वे अपने बच्चों के मुस्तकबिल के लिए कर्ज के बोझ तक में दब जाते हैं और उन्हें इन कोचिंग सेंटरों में भेजते हैं। इस हसरत के साथ कि मेरा बेटा या बेटी आगे चलकर बड़ा अफसर बनेगा, बड़ी अफसर बनेगी।
जरा सोचिए, उन मां-बाप पर क्या गुजर रही होगी जब उन्हें पता चला होगा कि उनका बेटा या बेटी कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में भरे पानी में डूब गए। भविष्य बताने वाले बाबाओं की तर्ज पर बिना किसी जवाबदेही के भविष्य बनाने का धंधा चला रहे इन स्टार गुरुओं को होनहारों की मौत से जैसे तनिक भी फर्क नहीं पड़ रहा। यही वजह है कि वे बेशर्मी चुप्पी की मोटी चादर ओढ़ चुके हैं। विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों के बीच कुछ गुरु समर्थन देने जरूर जा रहे हैं लेकिन बड़े नाम नदारद हैं।